प्यार क्या है?
डॉ. कमल किशोर चौधरी ‘वियोगी’
मैं था मुक्त गगन का पंछी,
पहन लिया सोने का हार।
तब से उड़ी नैन की निंदिया,
उड़ गये मन के चैन क़रार॥
माया के इस मोहक वन में,
रहजन बन आये सब यार।
दिल की दौलत लूट ले गये।
लूट ले गये जो था प्यार॥
प्यार-प्यार हर कोई कहता।
पर क्या जाने प्यार का सार।
प्यार से बढ़के इस दुनिया में,
और नहीं कोई दौलत यार॥
कहा कबीर ने कैसा सच है?
प्यार नहीं कोई व्यापार।
प्यार जो पाना चाहे इन्सां।
शीश धरे तब बेड़ा पार॥
प्यार ही राधा, प्यार यशोदा।
प्यार ही परमेश्वर करतार।
प्रेम के बल विष पी गई मीरा,
प्यार जगत का तारन हार॥
प्रेम का जिसने प्याला पीया।
वो सुकरात कहाया कहाया।
लैला-मजनूँ प्रेम के द्योतक,
जिसमें नूरे ख़ुदा समाया॥
नशा प्रेम का लगा है जिसको,
उसको ना संसार सुहाया।
नींद उड़ी ओ चैन गँवाया।
पर दीदार ईश का पाया॥