प्रवाद

विजय कुमार (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

हर प्रवाद के आगे रण ठान लिया,
मानो दिव्य शक्तियों को धारण किया,
शुरू कर कहानी संग्राम की,
चिंता ना कर परिणाम की,
गढ़ता जा और बढ़ता जा,
अपने इस सफ़र के इम्तिहान में,
मुश्किल के लिए मुश्किल बन तू,
और मचा दे प्रलय अपने वार की,
कुछ चुभने से जख़्म तो मिलता ही है,
तू परवाह न कर इन बाधाओं की,
 
ज़िम्मेदारियों को समझ ले
भ्रम में रहने वाले मानव,
क्षण-प्रतिक्षण गहराता जा
और दिखा दे रहस्यमयी करतब,
चूक गया अब जो तू
फिर पछताता रह जाएगा,
अनमोल सपना भी बिखर जाएगा।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें