पिता के कुछ ख़त
सतीश सिंहघर की सफ़ाई में
अचानक!
मिल गये
पिता के कुछ ख़त
याद आ गये वो दिन
जब पिता घर से बहुत दूर
रहते थे एक क़स्बेनुमा शहर में
अपनी व्यस्तम दिनचर्या में से
कुछ पल चुराकर
लिखा करते थे वे इन्हें
सबकुछ उढ़ेल देते थे इनमें
सुख-दु:ख और न जाने क्या-क्या
इतने बरस बीत गये
पिता को गुज़रे हुए
और अचानक!
ये ख़त
मानों फिर से सजीव हो गये पिता
इतने भावनात्मक हैं ये ख़त कि
आश्चर्य में डूबा है
पत्नी का चेहरा
सहसा!
वह कह उठती है
इतने भावुक थे तुम्हारे पिता
वह भी
पुलिस में होने के बावजूद
ये ख़त, केवल ख़त हैं
या जीवन में संघर्ष करने के प्रेरणास्रोत
जो तीस बरस पहले
लिखे थे उन्होंने मुझे
कितनी आसानी से
गुज़र जाता है वक़्त
सबकुछ बदल गया है
पर, ख़तों में रची-बसी
पिता की ख़ुशबू
आज भी जस की तस है
शायद,
इन सब चीज़ों में ही
बचा है
जीवन का सार।