फाग
ललिता श्रीवास्तवलोग झूमते चलें ये फाग का महीना है
तन-मन में आग लगी, आग का महीना है!
बाग़ में बसन्त जब हौले से आता है
तितली और भौरों के साथ मँडराता है।
आम के दरख़्तों पर नवकिसलय आता है
लीची की फुनगी से कोयल-दल गाता है।
रक्तिम गुलाल से दहका हर रंग है
केसर की गंध में गदराया अंग है।
गालों पर छलकी है टेसू की लाली
बलखाती नार चलें चाल मतवाली।
प्रीतम बग़ैर ये ढंग नहीं भाते हैं
टेसू के फूल से काँटे चुभ जाते हैं।