परमात्मा तो पता नहीं पर, कण-कण रहता तू है ज़रूर
भीष्म शर्मा
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर।
मूलकणों ने सब कुछ देखा जो,
कुछ देख रहा है तू।
काम भी सारे करते हैं वो,
जो कुछ भी करता है तू॥
काम, क्रोध और लोभ, मोह,
मत्सर के जैसे सारे भाव।
सारे मूल कणों में रहते,
जैसे दिखलाता है तू॥
वो तो भवबंधन से दूर,
तुझको इसका क्यों सुरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
मूल कणों का वंशज है तू,
वे ही ब्रह्मा-प्रजापति।
उनके बिना न जन्म हो तेरा,
न ही कोई कर्म-गति॥
वे ही तेरे कर्ता-धर्ता,
वे ही हैं पालनहारी।
वे ही हैं शरणागत-वत्सल,
रक्षक, स्वामी, और पति॥
अहंकार बिल्कुल न उनमें,
पर तुझको किसका ग़ुरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
सृष्टि के आदि में बनते,
परम पिता परमात्मा से।
परमात्मा तो दिख नहीं सकते।
वे ही निकटतम आत्मा से॥
बना के मूर्ति पूजो या फिर,
ऐसे ही चिंतन करो।
सबकुछ कर भी अछूते रहते,
तुम भी ऐसा जतन करो॥
झाँका करो उन्हें भी नित पल,
रहो न दुनिया में मग़ुरूर॥
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
योग से ऐसा चिंतन होता,
सुलभ किसी से छिपा नहीं।
कर्म ही है आधार योग का,
वाक्य कहाँ ये लिपा नहीं॥
क्वांटम दर्शन निर्मित कर लो,
अपने या जग हित ख़ातिर।
चमत्कार देखो फिर कैसे,
हार के मन झुकता शातिर॥
मेरा दर्शन न सही पर,
अपना तो गढ़ लो हुज़ूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
डॉक्टर हो या हो इंजिनीयर,
नियम समान ही रहते हैं।
अच्छे चिंतन बिना अधूरे,
काम हमेशा रहते हैं॥
कर्म से स्वर्ग तो मिल सकता है,
मुक्ति बिना न चिंतन के॥
यूनिवर्सटी शिक्षा दे सकती।
ज्ञान बिना न संतन के॥
उसके आगे सब समान हैं,
गडकरी हो या हो थरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर।
2 टिप्पणियाँ
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17 Nov, 2025 05:54 AM
आदरणीय सर, आपके प्रेरक शब्दों के लिए हृदय से धन्यवाद। सच कहूँ तो मैं पुस्तक बनाने के बारे में सोच रहा था, और उसी प्रक्रिया में यह कविता स्वतः बन गई। लोग ब्रह्मा और देवताओं को प्रायः विशेष मानव-रूप में देखते हैं, जबकि मेरी दृष्टि में वे quantum world के ऐसे सूक्ष्म ‘agents’ हैं जो एकदम मनुष्य जैसी क्रियाओं में संलग्न होते हुए भी पूर्णत: detached और nondual रहते हैं। शायद इसी कारण वे मानवीकरण होकर पूज्य रूप में प्रतिपादित किए गए—ताकि उनके संग रहने से मनुष्य में भी वे दिव्य गुण जन्म ले सकें। आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहे, यही मेरे लिए सौभाग्य है। सादर प्रणाम।
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16 Nov, 2025 05:08 PM
भीष्म जी, आपकी यह कविता सरल भाषा में गूढ़ सत्य को सहजता से प्रस्तुत करती है। आप परमात्मा की अनिर्वचनीयता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, कण-कण में निहित दिव्यता का बोध कराते हैं। कर्म, भावनाओं और मूल तत्वों के माध्यम से जीवन और ब्रह्माण्ड की एकात्मता की अनुभूति कराना यह रचना चित्रित करती है। योग, चिंतन और विज्ञान के संदर्भों का समावेश इसे आधुनिकता और आध्यात्मिकता का सुन्दर संगम बनाता है। हर व्यक्ति के भीतर निहित परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर यह कविता एक प्रेरणादायक संदेश देती है जो आत्म-ज्ञान और समत्व की ओर प्रेरित करता है। मेरी ओर से साधुवाद। कृपया सृजनरत रहें। सादर।