पाहुन (दीपा जोशी)

03-05-2012

पाहुन (दीपा जोशी)

दीपा जोशी

बिन परिचय 
बिन आभास के
आया पाहुन जो पास
मधुर कसक सी
दे गया
निस्पंद उर में आज

 

व्याकुल थे लोचन
युगों से
एक झलक पाने को
आन बसा वो
रोम रोम में
चिर तृष्णा मिटाने को

 

श्वास निश्वास 
की डोर बंधे पल
कई युग बनाने को
रच बस गया 
वह हृदय में
युगों का फेर मिटाने को

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