ओस की बूँद

15-12-2022

ओस की बूँद

प्रमोद कुमार साहू (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मेघ में समाई शीत लहर, 
छीन छीन क्यों रोती हो। 
समीर की तुम मीत प्रिय, 
जग शीतल कर सोती हो। 
 
रात्रि में करती विचरण, 
पवन तुम्हारा सारथी हो। 
जाना होता भिन्न दिशा, 
संग पवन उड़ जाती हो। 
 
रंगहीन काया पारदर्शी, 
क्यूँ धूप से घबराती हो। 
होते भोर दिनकर देख, 
धरा में छिप जाती हो। 
 
हे ओस तेरी बूँद प्यारी, 
पड़ी भूमि पर मोती न्यारी। 

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