निर्णय
रश्मि सिन्हासुप्रिया, खिड़की पकड़ कर, रात्रि के अंधकार में शून्य में देख रही थी। पता नहीं क्या तलाश रही थी उस अंधकार में।
सोच रही थी कि आकाश में टिमटिमाते तारों के पास क्या उसकी समस्या का समाधान होगा?
प्राइवेट कंपनी में उच्च पदाधिकारी सुप्रिया, बहुत दिन से देख रही थी कि उसी की कंपनी में कार्यरत अनुराग किसी न किसी बहाने उसके आस पास मँडराने की कोशिश करता रहता था।
कई बार वो उसे लंच पर साथ चलने के लिए भी कह चुका था पर वे शालीनता से इनकार कर देती।
इस बार पता नहीं क्या सोच कर उसने हामी भर दी थी। खाना खाते हुए वो उसे अपने परिवार के बारे में बताने लगा, “सुप्रिया जी, मेरी पत्नी का 2 वर्ष पूर्व देहांत हो चुका है एक 4 वर्ष की बेटी है। परिवार वाले शादी के लिए दबाव बना रहे हैं पर मैं मानसी को भूला नहीं हूँ।”
बस ऐसे ही हल्के-फुल्के पलों में वो मुलाक़ात ख़त्म हुई। और इस समय . . .
सुप्रिया की आँखों में अपने वैवाहिक जीवन के दृश्य तैर गए, धोखे से ग़लत जानकारियाँ देकर की गई शादी, रोहित का पीते रहना, और कभी-कभी ये अहसास दिलाना, कि इस परिवार का मुखिया वही है और इस घर में सिर्फ़ उसकी ही चलेगी। कभी हाथ भी उठा देना . . .
सुप्रिया की सहनशक्ति को चुकना ही था जिसकी परिणति तलाक़ में हुई।
उसके अपने परिवार और दोस्तों के बीच भी शादी-शुदा जीवन के कटु अनुभव उसके साथ थे। और वो उन अनुभवों के आधार पर भविष्यद्रष्टा हो चुकी थी।
हालाँकि वो अनुराग के परिवार, उसके स्वभाव के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। पर उसकी दूरदृष्टि उसको सावधान रहने के संकेत अवश्य दे रही थी।
झूठ बोलता है अनुराग, मानसी को नहीं भूला; शादी नहीं करनी आदि . . .
सर झटक कर वो वर्तमान में आई। और सोने चल दी।
सुबह जब तैयार होकर ऑफ़िस के लिए निकली तो ऑफ़िस के पास वाले चौराहे पर जाम लगा हुआ था जो खुल नहीं रह था। पता चला किन्हीं दो व्यक्तियों में मार-पीट हो रही है।
ओफ़्फ़ो! इन लोगों को मार-पीट के लिए भी सड़क ही मिलती है, चिड़चिड़ा कर सुप्रिया ने सोचा।
कार का दरवाज़ा खोल वो आगे बढ़ी देखने के लिए पर फ़ौरन ही पीछे हो गई। वो अनुराग था जो भद्दी गाली देता हुआ एक युवक से भिड़ा हुआ था और वो युवक उसके आगे हाथ जोड़ रहा था। तभी ट्रैफ़िक पुलिस वाले को आते देख वो पुनः कार में जाकर बैठी।
जाम खुल चुका था, और सुप्रिया की आँखों के आगे छाया अँधेरा भी छँट चुका था।
तभी चपरासी ने उसके सामने एक फ़ाइल लाकर रखी। खोलते ही उसके सामने अनुराग की लिखावट में एक स्लिप थी, “सुप्रिया जी मुझे पता है आपका डिवोर्स हो चुका है कृपया अन्यथा न लें क्या अपना बाक़ी जीवन आप मेरे साथ बिताना पसंद करेंगी?”
ओह! तो ये बात, एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर खेल गई। उसने सही ही भविष्य देखा था। स्वार्थी अनुराग को अपनी बेटी पालने के लिए एक माँ चाहिए थी और पत्नी नहीं और आज ही सुबह उसने अनुराग का असली चेहरा भी तो देखा था।
एक स्लिप में बड़ा सा ‘नो’ लिख कर वो फ़ाइल अनुराग तक पहुँचवा चुकी थी।