नारी

मानविका चौहान  (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

सहमी आज क्यों यह नारी है, 
क्यों बन गई वह एक बेचारी है। 
 
कौन-सा अपराध करा उसने जन्म लेकर, 
यह तो दुनिया दुराचारी है। 
 
आज क्यों गृहस्थी में सिमट गई यह नारी है, 
यह तो जननी और ममता की पुजारी है। 
 
आज क्यों अकेली खड़ी यह नारी है, 
ना वह कोई दुर्गा है या काली है, 
वह तो केवल एक नारी है। 
 
आज द्रौपदी को ख़ुद अपने लिए लड़ना है, 
क्योंकि हर घर में एक नया दुशासन खड़ा है। 
 
पूजनीय हर एक नारी है, 
वह तो एक ममता की पुजारी है। 
 
क़लम और शिक्षा से लड़नी हमें यह लड़ाई है, 
एक मात्र हथियार नारी का पढ़ाई है। 
 
प्रभु ने यह कौन सी लीला रचाई है, 
हर परिस्थिति में यह नारी अकेली ही तो खड़ी पाई है। 
 
बिना डरे हर दुशासन से तुम ही को लड़ना है, 
अपना कृष्ण, दुर्गा और काली तुम्हें ही तो बनना है॥

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