मुसाफ़िर प्रेम

01-01-2022

मुसाफ़िर प्रेम

स्नेहा (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सुनो, कुछ कहना था तुमसे . . .
हाँ, कुछ तुम्हारी तारीफ़ में, 
और कुछ तुम्हारी शिक़ायत में भी . . . 
 
तुम आते हो मेरे शहर महीनों बाद . . .
जैसे किसी त्योहार की तरह, 
ढेर सारी ख़ुशियाँ ले कर . . . 
और फिर उसी त्योहार की तरह, 
चले भी जाते हो . . . 
ढेर सारी आशाएँ और थोड़ी उदासी दे कर . . . ! 
 
क्या ऐसा नहीं हो सकता; 
कि तुम कुछ देर और रुक जाओ, 
या फिर चले आओ कभी, 
जैसे किसी बिन मौसम बारिश की तरह . . . ! 
 
या फिर चाहो तो मुझे ले चलो, 
तुम अपने साथ, 
और रख लो मुझे अपने पास . . . 

1 टिप्पणियाँ

  • 28 Dec, 2021 06:23 PM

    यह उम्दा कविता है स्नेहा जी ।

कृपया टिप्पणी दें