ख़ास

स्नेहा (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

कुछ लोग मुझे ऐसे मिले
जिसकी मुझे ना थी कभी आश, 
 
जब थी मेरे में भर चुकी पूरी निराशा, 
तभी यूँ उन्हीं दोस्तों ने मुझे भर दी आशा, 
 
हाँ जब मैं होती कठिन परिस्थितियों में, 
याद करते थे वे मुझे वे उस वक़्त भी, 
 
जब लगता था अब कि हो गया है सब कुछ ख़तम, 
तभी उन्होंने खोज डाला मुझे में मुझ जैसा ही कोई ख़ास
 
उनके साथ वक़्त ऐसे गुज़र जाते 
मानो की उनसे है हमारे शादियों के नाते, 
जबकि यह थी हमारी दूसरी ही मुलाक़ात– 
बिना बेज़्ज़ती के होती नहीं उनसे कुछ भी बात, 
 
नहीं जानती थी कि कुछ लोग अनजाने ही मिलते है, 
और अनजाने ही हो जाते है इतने ख़ास . . . । 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें