मेरी भूमिका
प्रवीण शर्मापूर्व निर्धारित है मेरी भूमिका
लिख कर रखे हुए हैं
मेरे संवाद
मुझे केवल इन्हें याद रखना है
और इस तरह अदा करना है
कि सुनने या देखने वालों को लगे
कि – नदी अपनी स्वाभाविक गति से
बह रही है
आसमान पूरी तरह साफ़ है
एक-एक करके —
छिटके हुए सारे तारे
गिने जा सकते हैं
उस छोर से इस छोर तक
हवाओं में एक सौंधी गन्ध है
जिसके झोंके
उन तक पहुँच रहे हैं
जो चाहते हैं कि सब कुछ इसी तरह चले
एक जादू की पिटारी खुले
जिसमें उन्हें तरह-तरह के रंग दिखें
मैं चाहता हूँ
कि अपने संवादों को
थोड़ा सा बदलूँ
अपने चेहरे की भंगिमा में वह
सब कुछ आने दूँ
जो मेरे भीतर खौल रहा है
उस लावे को बाहर आने दूँ
मैंने यह संवाद माँगे तो नहीं थे?
मैंने यह नाटक चुना तो नहीं था?
अभिनय मेरे जीवन का लक्ष्य तो नहीं था?
पूर्व निर्धारित है मेरी भूमिका
लिखकर रखे हुए हैं मेरे संवाद