मेरे भीतर, मेरे अंतर्मन में

03-05-2012

मेरे भीतर, मेरे अंतर्मन में

मुरारी गुप्ता

क्या यह मुमकिन है
तुम अपनी हार का कोई रास्ता
मुझे बताओ। 
क्योंकि मैं प्रेम को दया के रूप में
नहीं पाना चाहता
मैं तुम्हें जीतना चाहता हूँ
तुम्हारे मन को
हृदय को
जज़्बात को . . .
तुम्हारी ख़ुशियों से मैं रूबरू हूँ
मैं उन्हें बढ़ा सकता हूँ
दे नहीं सकता
मगर यक़ीनन . . .
तुम्हारी ख़ुशियों से मोहब्बत है मुझे
क्या यह एक रास्ता है
मुझे नहीं पता, मगर
तुम बताओ . . .
क्या यह रास्ता है? 
हाँ, मैं इम्तिहान के लिए तैयार हूँ
अपनी उम्मीदों को मुझमें देख पाओ तो
टटोल सकती हो ख़ुद को
मेरे भीतर, मेरे अंतर्मन में? 
जब यक़ीन हो जाए
और अपना अक्स देख पाओ
तो बताना . . .
तुम्हारे जज़्बात की क़द्र करने का
हक़ है मुझे? 

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