मेघ-निमंत्रण

03-09-2014

मेघ-निमंत्रण

आलोक चौबे

मेघ
बरस, बरस
खा, तरस तरस
तू देख सरस
मत भटक, अटक
हाँ
देखी तेरी मस्त चाल
मदमस्त पवन के कदम-ताल
यह आवारा
तुझे उड़ाता - गगन भर
हाँफते, हुंकार भरते
अपने ही संगी को ढूह मारते
विद्दुत काँपता, चीरता
आकाश से धरती तक
जो जलती झुलसी श्लथ
उत्ताप, संताप से त्रस्त
बरस बरस की प्यासी
निहारती, निःश्वास भेज
मूक आमंत्रण
सरस कर
कोख
आ बरस बरस
खा तरस तरस।

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