मरता कुआँ

27-09-2017

मरता कुआँ

डॉ. मनोज कुमार

स्रोत था जीवन का मैं
अमृत था मेरा जल
तृप्त होते थे मुझसे तुम रोज़
सिंचित करता था हर पल
करते थे पूजा सुबह शाम मेरी
था वर्चस्व तुम्हारे जीवन पर
सोते जागते थे तुम मेरे साथ
सुनता था तुम्हारे दुःख सुख की बात
जब से हुई है नल और कल से दोस्ती तुम्हारी
लुप्त हो रही है मेरी पहचान
है मेरे भी रिश्तेदार शहर के सब मुहल्लों में
अब वो भी हो गये विलुप्त
अब है मेरी बारी मैं ले रहा हूँ अन्तिम साँसें
रो रही है आत्मा अब मेरी
कर रहे हो दफ़न मुझे
तड़पा तड़पा के हर रोज़
मनाओगे ख़ुशी बना के मेरी क़ब्र
कोई नहीं चाहता जीर्णोद्धार मेरा
रोओगे तुम एक दिन
जब टूट जाएगी दोस्ती नल और कल की
देर हो जायेगी तब तक
खोदोगे मेरा क़ब्र मिलेगा अवशेष
नहीं मिलेगा जीवन का वह स्रोत
चाहते हो ख़ुशहाली कर दो मेरा जीर्णोद्धार
करूँगा सिंचित सबको
यही है अंतिम
इच्छा हमारी

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