मन को पढ़

01-10-2021

मन को पढ़

ज्योति त्रिवेदी (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

जो समझे मेरी लिखावट,
वो मेरे मन को पढ़ रहा है
झाँक कर मेरी आँखों में, 
दिल में उतर रहा है
 
न था नाराज़ ज़माने से,
न ख़ुद ग़मज़दा रहा है
दामन मेरा सजा कर,
ख़ुशियाँ ही भर रहा है
 
जो समझे मेरी मोहब्बत,
वो मेरे मन को पढ़ रहा है
छुकर मेरी हर साँस को, 
दिल में उतर रहा है
 
रुस्वाइयाँ मेरे नाम की,
लेकर चल रहा है
हर इक बूँद पानी को,
मोती सा कर रहा है
 
जो समझे मेरी वफ़ा, 
वो मेरे मन को पढ़ रहा है
हमसफ़र मेरा वो, 
मेरी ज़िंदगी बदल रहा है
 
तमस भरी रातों में,
राहों की भोर बन रहा है
चेहरे पे ज्योति नूर, 
उसी का चमक रहा है
 
जो समझे अनकही को, 
वो मेरे मन को पढ़ रहा है
पकड़कर हाथ हमारा,
वो साथ चल रहा है

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