दो देह
ज्योति त्रिवेदीदो देह एक प्राण हम तुम, फिर क्यों अनजान हम तुम
ख़ूबसूरत शामियाना, रौशनी से सराबोर
एक दूसरे को, देख न पायें हम तुम
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . .
ग़ज़ब की चाँदनी रात, महफ़िल शबाब पर
फिर क्यों, पास न आये हम तुम
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . .
न कलरव कोई, न कोई और शोर हैं
देखो नाम भी, न ले पायें हम तुम
दो देह एक प्राण हम तुम . . .
चाँद की शीतलता हर तरफ़, तारों का जमघट
इतने पास होकर दूरी, और हम तुम
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . .
खौफ़ लोगों का, और कुछ कहने का डर
आज फिर यूँ ही, अजनबी हम तुम
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . .