दो देह

ज्योति त्रिवेदी (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दो देह एक प्राण हम तुम, फिर क्यों अनजान हम तुम 
ख़ूबसूरत शामियाना, रौशनी से सराबोर
एक दूसरे को, देख न पायें हम तुम 
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . . 
 
ग़ज़ब की चाँदनी रात, महफ़िल शबाब पर
फिर क्यों, पास न आये हम तुम 
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . . 
 
न कलरव कोई, न कोई और शोर हैं
देखो नाम भी, न ले पायें हम तुम 
दो देह एक प्राण हम तुम . . . 
 
चाँद की शीतलता हर तरफ़, तारों का जमघट
इतने पास होकर दूरी, और हम तुम 
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . . 
 
खौफ़ लोगों का, और कुछ कहने का डर
आज फिर यूँ ही, अजनबी हम तुम 
दो देह एक प्राण हम तुम फिर . . . 

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