मैं तुम्हारी प्रिया
सरोज राम मिश्रा ‘प्रकृति’कोई तीसरे पहर की रात थी
रीझ गया कनु का मन
प्रिया की याद में . . .
सेतु बनी
राधा की शोख चंचल सकुचाती पलकें
विकल हो उठे कनु
छोड़ा घर संसार . . .
आ बैठे फूलों की शैइया पर
हौले से राधा के पा . . . स
कृष्ण के प्रेम भरी छुअन से
सिहर उठा
राधा का मौन मन . . .
कनु की विराट ऊर्जा में
समा गया
उसका अधखिला
काँपता तन . . .
बनी राधा अब-
कृष्ण की माया
कृष्ण की शक्ति
कृष्ण की भक्ति
कनु को कंठ लगाए
आकंठ में
डूबती . . . हुई
कनुप्रिया
1 टिप्पणियाँ
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गहरी संवेदना में उतर कर लिखी गई रचना मन को उतनी ही गहराई से छूती है