क्या युद्ध ही ज़रूरी है?
कपिल साहूआज निर्बल यूक्रेन देश पर
संकट के बादल छा गए,
जब महाशक्तिशाली शस्त्र लेकर
रूस के सैनिक आ गए,
काँप गई वहाँ की धरती सुनकर
गड़गड़ाहट विमानों की,
हुआ तबाही का आरंभ
बिना परवाह किए प्राणों की।
कहते हैं यह क़दम उठाना
पुतिन की मजबूरी है।
नहीं शेष अब कोई मार्ग,
क्या युद्ध ही ज़रूरी है?
यह जंग एक परिणाम है
यूक्रेन की दूरदर्शिता का,
निर्बल होकर परीक्षा लेना
अनुपयुक्त है विवशता का।
जिनसे गए थे हाथ मिलाने
उन्होंने हाथ छोड़ दिया,
धकेल कर इस संग्राम में
सभी देशों ने मुँह मोड़ लिया।
परन्तु इस वक़्त यूक्रेन देश का
शत्रु उसकी कमज़ोरी है,
नहीं शेष अब कोई मार्ग,
क्या युद्ध ही ज़रूरी है?
कहते हैं अहंकार-सर्प व्यक्ति को
अंत की ओर ले जाता है,
बहकावे का रस तो इसको
और विषैला बनाता है,
किन्तु प्रबल भी सदा यह याद रखें कि
इक अधर्मी शक्तियों पर इठलाया था,
अभिमान-वश वह बलपूर्वक
देवी को उठा लाया था,
नष्ट हो गया था राज्य उसका और
वो भी मृत्यु को प्राप्त हुआ,
राम-राम कहते रावण का
अंतिम क्षण समाप्त हुआ।
पर प्रतीत होता है कि अभी
वह राम-कहानी अधूरी है,
समस्त अधर्मियों का विनाश
अब तो इक मजबूरी है,
करके कंठस्थ यह बात दोनों पक्ष
वार्त्तालाप के लिए आगे आएँ,
यही शेष है अंतिम मार्ग,
युद्ध नहीं ज़रूरी है।
फ़िक्र करो नागरिकों की, जिनको
सहना पड़ रहा प्रत्यक्ष नुक़्सान है,
देश तो वो छोटा सा है पर उसमें
बसती करोड़ों की जान है,
कैसे भाग कर करें पलायन,
युवकों को नहीं मंजूरी है,
वो भी उतरेंगे रणभूमि में,
ये भी तैयारी पूरी है।
छोड़ो अन्य देशों की बातें,
अपने देश पर आते हैं,
गर्व से सीना चौड़ा करके
भारत की महिमा बतलाते हैं,
जब पुतिन के रौद्र रूप के कारण
एक विपत्ति आई,
तब यूक्रेन देश ने विशेषतः भारत से
मदद की गुहार लगाई,
विनाश रोकने को अखिल विश्व ने
भारत पे भरोसा जताया,
और फिर सदा की भाँति इस बार भी
यह विश्वगुरु कहलाया।
शान्ति स्वभाव वाला यह देश
रखता जंग से दूरी है,
ढूँढ़ लेता कोई अन्य मार्ग क्योंकि
युद्ध नहीं ज़रूरी है।
युद्ध नहीं ज़रूरी है।