किस रास्ते
डॉ. यू. एस. आनन्दलोग कहते हैं
हम इक्कीसवीं सदी में जा रहे हैं।
किंतु
मेरी समझ में नहीं आता
वह रास्ता कौन-सा है ?
क्योंकि
उस दिन
सड़क किनारे
बीमार कुत्ते-सा रिरियाते उस
अस्थि-पंजर काया को देख पूरी भीड़ गुज़र गई।
पर किसी को दया नहीं आई।
फुटपाथ पर हाथ टेके
अपने सूखे स्तनों से
अपने लाड़ले को झूठी
तसल्ली देती निर्विकार-सी बैठी
उस ठठरी महिला को देख
लोग उत्तेजना महसूस करते
सरसराते आगे की ओर बढ़ गये।
किसी को दया नहीं आईं।
सरदार जी के ढाबे में
अपने पाँवों से बड़ी चप्पल पहने
बुजुर्गों की आवाज में
बोलियाँ लगाते
पोंछा मारते,
उस नौनिहाल के हाथों
सैकड़ों लोगों ने चाय पी
पर किन्हीं को उस पर रहम नहीं आया।
भीड़ भरे बाजार में
गाँव की उस अबोध कन्या के
दुपट्टे को दरिंदों ने
तार-तार कर डाला,
गुमसुम भीड़, किनारे-किनारे गुज़र गई
किन्तु किसी ने पहल नहीं की ।
इसलिए मित्र
मुझे तुम,
केवल इतना भर बता दो कि
लोग इक्कीसवीं सदी में जा किस रास्ते से रहे हैं
और क्यों जा रहे हैं।