कीचड़ में कमल

08-01-2019

कीचड़ में कमल

हरिहर झा

पाषाण हो चुका यह हृदय
जिससे चट्टानें आपस में टकरा कर
चूर होती
बह रही नदियों में
पर अब भी
कोंपलें खिलने का अंदेशा
चिड़ियों के चहचहाते स्वर
सुनने की उत्कंठा
और फूलों से महकती
सुगंध के स्वप्न अभी बाक़ी।

किसीने अपनी तलवार से
बंजर धरती पर
चीर दी अंतड़ियाँ
पर गरजते धमकाते बादलों में
करुणा की गुंजाइश अब भी बाकी
निष्ठुर धरती से
भावुक संवेदना उपजने की आशा
अब भी बाकी
मुर्दा आसमान से
जीवन-शक्ति बरसाने की
अपील अब भी बाक़ी।

हानी प्यार की कोई जगह नहीं
क्योंकि अब प्यार हो चुका है एक
सौदा
गणित का एक समीकरण
या एक कंप्यूटर प्रोग्राम
कुछ तत्त्वों का बहता हुआ रसायन
कीचड़ के इस फैलाव में भी
कमल खिलने की
उम्मीद अब भी बाक़ी।

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