कविता
सुनीता बहलकविता, मेरी विद्यार्थी, पढ़ाई, खेलकूद, स्टेज आदि सभी क्रियाकलापों में हमेशा आगे रहती थी। लिखती व गाती भी बहुत अच्छा थी। उसका धारा प्रवाह कविता पाठ व मोहक मुस्कान सब को मंत्र मुग्ध कर देते थे। बी.ए. तृतीय वर्ष तक वह सारे कॉलेज की चहेती बन चुकी थी। फिर एक दिन पता चला कि कविता ने राहुल से विवाह कर लिया है। सुन कर थोड़ा अचम्भा हुआ क्योंकि दोनों का व्यक्तित्व बहुत भिन्न था। पर मुझे कविता की समझ पर विश्वास था।
पाँच-छह साल बाद कविता बाज़ार में मिल गई। हाथ में राशन से भरा थैला व साथ में दो छोटी प्यारी बच्चियाँ। बेतरतीब बाल व निस्तेज - सा चेहरा। मुश्किल से चल पा रही थी क्योंकि वह फिर से पेट से थी। देखते ही मैंने मुस्कुराकर पूछा, "कैसी हो कविता? बड़ी प्यारी बच्चियाँ हैं तुम्हारी। अभी भी कवितायेँ लिखती हो ना।" मैंने सारा कुछ एक ही साँस में पूछ लिया।
कविता सपाट चेहरे के साथ बोली, "मैडम, आप जिस कविता को ढूँढ़ रहे हो वो कहीं खो गई है।" इतना कह कर जवाब सुने बिना वह आगे निकल गई।
वक़्त बीतता चला गया, कुछ सालों बाद अख़बार की सुर्खियाँ देख कर मन एक साथ दुख व हर्ष से भर गया। सुर्खियां कुछ इस प्रकार थीं। "जिस औरत को उसके पति ने तीसरी बेटी होने पर घर से निकाल दिया, उसकी कविताओं का काव्य संग्रह 'प्रेम-मेरा साहस' सर्वश्रेष्ट काव्य संग्रह चुना गया है"।
मुझे लगा जैसे भी हो मेरी कविता मुझे वापिस मिल गई है।