कथन
शालिनी सिंहक्या यूँ भी होता है
जो सोचा वो हो न सका।
हर बार घिरती है मेघा
पर बरसात, कुछ ख़ास हो न सकी।
कुछ मीठी कुछ नमकीन
कुछ शंका है ग़मगीन।
भावनाओं की जो उत्थान है,
उनकी क्यों है सीमा रेखा।
जब बाण धनुष पर चढ़ चुका ,
तो व्यर्थ है लेखा-जोखा।
जो है, सो है,
स्पष्ट करो मन के भाव
चलो उठो, आगे बढ़ो और कह डालो,
जिनसे है मन मुटाव।