कथन

शालिनी सिंह (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

क्या यूँ भी होता है
जो सोचा वो हो न सका।
हर बार घिरती है मेघा 
पर बरसात, कुछ ख़ास हो न सकी।
 
कुछ मीठी कुछ नमकीन 
कुछ शंका है ग़मगीन।
भावनाओं की जो उत्थान है, 
उनकी क्यों है सीमा रेखा।
 
जब बाण धनुष पर चढ़ चुका ,
तो व्यर्थ है लेखा-जोखा।
जो है, सो है,
स्पष्ट करो मन के भाव 
चलो उठो, आगे बढ़ो और कह डालो,
जिनसे है मन मुटाव।

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