कल अचानक ज़िन्दगी मुझ को मिली
तेजेन्द्र शर्माज़िन्दगी आई जो कल मेरी गली
बंद किस्मत की खिली जैसे कली।
ज़िन्दगी तेरे बिना कैसे जियूँ
समझेगी क्या तू इसे ऐ मनचली।
देखते ही तुझको था कुछ यूँ लगा
मच गई थी दिल में जैसे खलबली।
मैं रहूँ करता तुम्हारा इन्तज़ार
तुम हो बस, मैं ये चली और वो चली।
तुमने चेहरे से हटायी ज़ुल्फ़ जब
जगमगाई घर की अँधियारी गली।
छोड़ने की बात मत करना कभी
मानता हूँ तुम को मैं अपना वली।
चेहरा यूं आग़ोश में तेरे छिपा
मौत सोचे वो गई कैसे छली।