काशी
गौरीहैं मस्त जहाँ के वासी
वो है महा नगरी काशी
भस्म है शृंगार जहाँ का
मनुष्य मोक्ष के अभिलाषी
महादेव है गान जहाँ का
पुण्य क्षेत्र है अविनाशी
कहाँ भटकता दर्शन को रे
कर ले चारों धाम यहाँ
मृत्यु से प्राप्त मोक्ष जहाँ
धन्य है काशी वासी॥