काश कि ऐसा हो जाए!

15-10-2021

काश कि ऐसा हो जाए!

कविता झा (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

काश कि ऐसा हो जाए,
तुझे चाहते चाहते मन से चाहत ही निकल जाए।
काश कि ऐसा हो जाए,
तुझे देखते देखते आँखों से ख़्वाब ही बह जाए।
काश कि ऐसा हो जाए।
 
तेरे इंतज़ार में,
नयन मेरे पत्थर से,
सूर्ख होती रतिया,
ख़ामोश रहती बतिया,
सुकून जैसे गुम सा हुआ,
हर ओर यादें हुई धुआँ धुआँ,
पड़ा यहीं किसी कोने में,
अरमानों की अर्थियाँ,
फ़ासले हुए इतने,
मीलों की दूरी दरमियाँ,
चल रहा संग मेरे सब,
फिर भी जैसे अनजान हुई दुनिया,
अल्फ़ाज़ों की कमी नहीं,
लुभाए मुझे खामोशियाँ,
तेरी यादें बढ़ाए,
दिल में पल पल बेताबियाँ,
धड़कनों की फ़रमाइशें,
सब जैसे बुझा बुझा,
ग़ैर हुए सब तुझ बिन,
ना रहा अपना कोई पासवां,
नाते तोड़ हुआ तू अग़्यार,
ये आज़ार ही अब मेरी दवा,
मेरी वफ़ाएँ हुई फ़िज़ूल,
कहाँ क़ुबूल हुई ये दास्ताँ,
कुछ अधूरे ख़्वाब से,
तक़दीर बनी आसमाँ,
धरती से जुदाई लिखी है,
क़िस्मत कहाँ हम पे मेहरबाँ,
हर इबादत में तू शामिल,
जाने क्यूँ क़ुबूल न हुई दुआ,
दुआ रही अधूरी सी,
तू ही तो मेरा हुआ ख़ुदा,
ना कोई ग़म इस इश्क़ के सिवा,
इश्क़ ने ज़माने भर का ग़म,
सौग़ात में परोस कर दे दिया,
अश्कों की काश ज़ुबान होती,
तो करती हमारे तड़प को बयाँ।
 
काश कि ऐसा हो जाए,
तेरा नाम लेते लेते मन तुझे ही भूल जाए।
काश कि ऐसा हो जाए,
तेरे याद में जीते जीते साँसें ही मर जाए।
काश कि ऐसा हो जाए।

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