जीवन संध्या के रंग – 003
उषा हिरानी
अजय भाई और विजय भाई दोनों के परिवार मुंबई की एक चाल में रहते थे। अजय भाई की बेटी वीणा एक ही संतान थी जबकि विजय भाई के भी एक ही बेटा विवेक था। दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल था विवेक और वीणा एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। अक़्सर साथ में ही आ जाया करते थे चाल के सभी कार्यक्रमों में भी दोनों बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। तो दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला . . .
एक दिन अजय भाई ने उन दोनों को एक ही नारियल में दो स्ट्रॉ रखकर पीते एक दूसरे की आँखों में खोए हुए देख लिया। तो घर जाकर विजय भाई से बात की अपने मोबाइल में खींची हुई दोनों की तस्वीर दिखा कर बोले, चलो अब मित्रों से समधी बनने का वक़्त आ गया . . .
विवेक और वीणा की शादी हो गई . . . दोनों परिवार पास पास ही रहते थे ख़ुशी से समय बीतने लगा। घूमने फिरने में ही 6 माह बीत गए . . .
आज शरमाते हुए वीणा ने विवेक को बताया कि वह अब पिता बनने वाला है। समाचार मिलते ही दोनों परिवारों में ख़ुशी का माहौल छा गया . . .
अरे क़ुदरत को कुछ और ही मंज़ूर था। अपने नाती का मुँह देखने से पहले ही वीणा की माँ अचानक हार्ट अटैक से चल बसी। अजय भाई अकेले रह गए . . .
एकाध मास में ही वीणा ने बेटे को जन्म दिया तो वह प्रसूति में थी अब घर का सारा काम उसकी सास अनीता बहन ही देखती थी। तभी एक और हादसा हुआ . . . विजय भाई अपने ऑफ़िस से आ रहे थे तभी उनका एक्सीडेंट हो गया और वही उनका देहांत हो गया।
घर में मातम छा गया . . . दो ही मास में दोनों के घर में दंपती खंडित हो गए . . . सब क्रिया कर्म हो जाने के बाद फिर से सब यथाक्रम चलने लगा जीवन का प्रवाह कहाँ किसी के लिए रुकता है?
इस तरफ़ अकेले पड़े अजय भाई को भी खाने की तकलीफ़ होती थी। तो वीणा ने अपने पिता को खाना पहुँचाने के लिए सास अनिता बहन को मना लिया . . .
वीणा घर में और बेटे में उलझी रहती . . . तो अनिता बहन रोज़ दोनों वक़्त चाय और दोनों वक़्त खाना अजय भाई को देने जाती . . . दोनों सुख दुख की बातें करते दोनों ने अपना जीवन साथी खोया था तो सम दुखी थे . . . एक चाल में रहने से पहले से रिश्ता तो था ही फिर समधी समधन हुए और अब दोनों में दोस्तों जैसा रिश्ता बन गया . . . दोनों अपना दुख भूलने लगे . . .
एक दिन अजय भाई और अनीता बहन एक दूसरे को ताली देते हुए किसी बात पर हँस हँस कर बातें कर रहे थे। विवेक और वीणा ने उन्हें देखा। एक दूसरे की और देखा। तो विवेक बोला क्या तू भी वही सोच रही है जो मैं सोच रहा हूँ? वीणा बोली आज कई महीनों बाद इन दोनों को ऐसे खुलकर हँसते हुए देख रही हूँ। क्यों न उनकी यह हँसी क़ायम की जाए . . .
आज अनिता बहन का जन्मदिन था विवेक और वीणा ने एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया। केक कटते ही विवेक और वीना हाथ में दो अँगूठियाँ और दो हार लेकर आ गए . . . विवेक ने अजय भाई से कहा, “क्या आप ससुर के बदले मेरे पिता बनेंगे?” तो वीणा ने भी अनिता बहन से कहा, “क्या आप सास की जगह मेरी माँ बनेंगी?” उन दोनों ने एक दूसरे को देखा . . . नज़रों से बातें की . . . और हाँ में सिर हिला दिया . . . सभी ने हर्षोल्लास से पुष्प वर्षा की दोनों ने एक दूसरे को अँगूठी और हार पहनाये। दोनों परिवारों में फिर से आनंद छा गया . . .
जीवन संध्या का एक रंग ऐसा भी होता है जब बेटा बहू उनको मेघधनुषी बना देते हैं . . .।
1 टिप्पणियाँ
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रिश्तों को सुखद मोड़ देती रोचक कहानी।हमारे पुरातन धर्म-ग्रंथों का भी यही कहना है कि देश, काल व पात्र को सामने रखते हुए हर युग में ऐसे बदलाव का होना आवश्यक हो जाता है जिससे परिवार व समाज की भलाई हो।