जाको राखे साइंयाँ—मेरी दृष्टि
नागराजन सीसमीक्षित कृति: जाको राखे साइंयाँ (यात्रा संस्मरण)
लेखिका: डॉ. पदमावती
समीक्षक: सी नागराजन
नमस्ते डॉ. पद्मावती महोदया,
आपका यात्रा वृतांत अत्यंत सुंदर और मार्मिक है।
मनुष्य चाहे जितनी योजना बना सकता है लेकिन ईश्वर की इच्छा के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता।
आपने महाबलिपुरम देखने के बाद फिर पांडिचेरी और अंत में तिरुवण्णामलै जाने की योजना बनाई। लेकिन भगवान अरुणाचलेश्वर और साथ जन्मने वाली देवी उण्णामुलैयम्मन की अनुग्रह आज्ञा और कुछ अलग थी। यह अच्छा हुआ था, उन्होंने आपको पहले तिरुवण्णामलै आने का आदेश दिया।
दक्षिण में स्थित भगवान शिव की पाँच विराट दिग्गज दिव्य स्थलों में जो देवारम, तिरुवासगम जैसे भक्ति साहित्य गीतों से गाया हुआ तिरुवण्णामलै अग्नि स्थल माना जाता है। यहाँ के मंदिर का क्षेत्रफल सहित मूलवर सन्नति आकाश को छूने वाले गोपुर, मंदिर के चार प्रमुख द्वार, सहस्र स्तंभवाले सभा मंडप, एक ही पत्थर से बनी नंदीश्वर, पाताल लिंग जहाँ रमण महर्षि ने मुक्ति प्राप्त हुई थी और पूर्णिमा के दिन होनेवाली 'गिरिवलम' परिक्रमा आदि के बारे में आपने जो वर्णन किया है वह भक्तों को भक्तिमय आनंद की बाढ़ में तैरने पर मजबूर कर देगा।
तिंडिवनम से तिरुवण्णामलै मार्ग पर दोनों तरफ़ से हरे-भरे खेत, झीलों और तालाबों के प्राकृतिक परिदृश्यों के साथ समुद्र तट पर बसा हुआ पांडिचेरी शहर और वहाँ के महर्षि अरविंदर आश्रम का वर्णन भी मनमोहक है।
आपके संस्मरण में शब्दशक्ति बहुत शक्तिशाली है उदाहरण के लिए—
“भूख सता रही थी, जो हमारी भक्ति की परीक्षा भी ले रही थी।”
साथ साथ आप हास्य रस की भावना को व्यक्त करने में भी नहीं छोड़तीं—
“छुट्टियों में जो प्राणी दस बजे तक सूरज की रोशनी नहीं देखते थे, आज चार बजे ब्रह्ममुहूर्त में उठकर बैठ गये थे।”
पुरुषों और बच्चों द्वारा बनाए ’टमाटर चावल और घर में बिना लहसुन के’ बारे में आपका हास्य वर्णन आदि बेक़ाबू हँसी बनाता है।
“सूर्य देव यहाँ कुछ ज़्यादा ही मेहरबान और उदारमना होकर अपना ताप दक्षिणवासियों पर लुटाते हैं।” (मानो इसलिए ही बहुत सारे दक्षिणवासी कृष्ण सा प्रतीत होते हैं।)
ठीक है, आख़िर एक प्रमुख विषय, वर्ष 2004 के बाद इस तारीख़ को सुनते ही सबका होश उड़ जाएँगे। हाँ, जिस दिन सवेरे भूकंप आया, इसके कारण बंगाल की खाड़ी बहुत पीछे हटकर और कुछ ही देर में विशाल राक्षस लहर के रूप में आकर कई लोगों की जान ले ली वही 26 दिसम्बर। ठीक उसी दिन उसी समय ईस्ट कोस्ट मार्ग पर आप अपनी यात्रा की योजना बनाई थी, लेकिन इसके अलावा और क्या कह सकता है कि भगवान ने आपको बहुत सारी रुकावटें और देरी की, और आपकी दिशा बदल दी।
सच है जिसे परमेश्वर बचाना चाहता है उसके विरुद्ध सारा संसार इकट्ठा हो जाए तो भी कोई नुक़्सान नहीं किया जा सकता।
इसलिए आपके यात्रा लेख का शीर्षक भी बहुत प्रासंगिक है “जाको राखे साइंयाँ”।
यह कहना उचित होगा कि आपके यात्रा लेख को पढ़ने वाले पाठकों को भी यात्रा का अनुभव अवश्य होगा। यह सच है अतिशयोक्ति नहीं।
नागराजन सी
होसूर।