इतिहास की परतों को उधेड़ कर लिखी कहानी 'रॉबर्ट गिल की पारो'

15-04-2024

इतिहास की परतों को उधेड़ कर लिखी कहानी 'रॉबर्ट गिल की पारो'

शकुंतला मित्तल (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

समीक्षित कृति: रॉबर्ट गिल की पारो (उपन्यास)
लेखिका: प्रमिला वर्मा 
प्रकाशक: किताब वाले 
मूल्य: ₹1800 

रॉबर्ट गिल और उसकी पारो के विषय में मैंने कभी नहीं सुना था और मुझे विश्वास है कि इस उपन्यास को पढ़ने से पहले मेरे जैसे अनेक लोग होंगे, जो देवदास और पारो की प्रेम कहानी से ही मात्र परिचित होंगे। रॉबर्ट बिल की पारो पूरी तरह ऐतिहासिक सत्य कथा है, जिसे लेखिका डॉ. प्रमिला वर्मा ने अपनी कल्पना शक्ति और लेखन शैली से रोचक और सरस बनाकर औपन्यासिक कृति के रूप में प्रकाशित करवाया है। प्रमिला वर्मा एक ऐसी सशक्त जिज्ञासु कथाकार हैं, जो अपने आसपास घटित होने वाली हर ख़बर पर अपनी पैनी दृष्टि रखती हैं। इसी के परिणाम स्वरूप उनके हाथ में अख़बार की एक कतरन आती है, जिसमें मात्र यह लिखा है कि मेजर रॉबर्ट गिल ब्रिटिश सैनिक अधिकारी को अजंता ग्राम की आदिवासी लड़की पारो अपनी बग़िया का काला गुलाब दिया करती थी और यह प्रसंग धीमे-धीमे अनोखी प्रेम कथा में बदल गया। सिर्फ़ एक इसी वाक्य के आधार पर लेखिका प्रेम की खोज शुरू करती है। जानकारियाँ इकट्ठा करते हुए तब तक उनके हृदय को संतोष नहीं मिलता, जब तक कि वह कथा प्रेम कथा ‘रॉबर्ट गिल की पारो’ उपन्यास की शक्ल में नहीं आ जाता। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी रॉबर्ट गिल बहुमुखी प्रतिभा का मालिक था। चित्रकार, फोटोग्राफर, माउथ ऑर्गन, पियानो और शिकार का शौक़ीन, लेकिन कहीं न कहीं उसके जीवन में एकाकीपन बहुत अधिक था। उसके एकाकी जीवन में कई लड़कियाँ आती हैं एनी, लीसा, फ्लावरड्यू और पारो। सभी को वह ईमानदारी से पूरे दिलो-जान से प्यार करता है। 

रॉबर्ट की कहानी का आरंभ 1849 में डायरेक्टर ऑफ़ कोर्ट की मोहर लगे लिफ़ाफ़े से होती है, जिसके आदेशानुसार उसे अंजता की बौद्ध गुफाओं के चित्र बनाने के लिए नियुक्त किया गया था। 

रॉबर्ट के लिए यह बहुत बड़ी ख़ुशी है पर उस ख़ुशी को वह किसके साथ बाँटे, यह उसे समझ नहीं आता क्योंकि वह नितांत अकेला है। उस अकेलेपन को वह हर रोज़ समुद्र तट पर जा कर डूबते सूरज का चित्र, उगते सूरज का चित्र, समुद्र के असीम विस्तार और उसमें डूबते उतराते तरह तरह के इंद्रधनुषी रंगों का चित्र, रेत, समुद्र में खेलते नंगे काले बच्चों की आकृति, दूर जाती मछुआरों की नौकाएँ, उनके फेंके जाल आदि को अपने कैनवस पर उतार कर अपने अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करता है और यहीं एक अँग्रेज़ लड़की एनी से उसकी भेंट होती है, जिसके पिता भी ब्रिटिश आर्मी में हैं। 

एनी को अपनी पेंटिंग्स दिखाते हुए वह अपनी ख़ास मित्र लीसा के बारे में भी बताता है। उससे बातचीत में रॉबर्ट स्वयं स्वीकार करता है कि सेना में होने पर भी वह बहुत भावुक क़िस्म का है। लेखिका ने स्थान-स्थान पर रॉबर्ट की पेंटिंग का विशद विवरण देने के साथ एनी, लीसा, पारो की ड्रेस, खाने के व्यंजन, वातावरण को अपने शब्दों की जादूगरी से ऐसा अंकित किया है कि हमें लगता है कि हम उससे साक्षात्‌ रूबरू हो रहे हैं। 

राॅबर्ट गम्भीर स्वभाव का है और एनी चंचल, चुलबुली। वह राॅबर्ट की मूर्ति बनाना चाहती है। टेबल पर रॉबर्ट का मूर्तिमय चेहरा रखते हुए एनी अपलक निहारते रॉबर्ट को देख कर भाँप लेती है कि उसकी आँखें उसकी फ़्रॉक के गले से उसके उघड़े शरीर को देख रही हैं। स्त्री सौंदर्य रॉबर्ट की कमज़ोरी रही है। पुरुषों की स्त्री शरीर के प्रति स्वाभाविक आकर्षण की मनोवृत्ति से लेखिका भली-भाँति परिचित है। अगले दिन वह समुद्र तट पर एनी का रेखाचित्र बनाता है। पत्नी फ्लावरड्यू वापस लंदन लौट कर जा चुकी है और ऐसे में एनी की निकटता उसके सोए प्रेम को झिंझोड़ कर जगा देती है। रॉबर्ट को एनी की पसीने से भरी हथेलियों को थामते हुए लीसा भी याद आती है। वह स्वयं अपने प्रेम को समझ नहीं पाता। घर आ कर जब उसने एनी के रेखाचित्र में रंग भरा, कैनवस पर एनी जीवन्त हो उठी और वह उसे सम्पूर्ण पाने के लिए बेताब हो उठा। वह विचार करता है कि लीसा को उसने टूट कर प्यार किया है पर फ्लावरड्यू के मर्दाना स्वभाव का अहं को स्वीकार नहीं करते हुए भी वह उसका साथ निभाना चाहता है और बच्चों के प्रति अपने कर्त्तव्य को मन से पूरा करना चाहता है। 

उसके जीवन में आदिवासी लड़की पारो भी आती है और उसके अपनेपन से रॉबर्ट का दिल पारो के लिए भी धड़कने लगता है। 

पिता-तुल्य फ़ादर रॉडरिक के कहने पर न चाहते हुए भी वह फ्लावरड्यू से सगाई स्वीकार कर लेता है। 

फ्लावरड्यू से विदा ले कर वह अपने मित्र टेरेन्स के बँगले में जाता है, जहाँ कभी टेरेन्स अपने माता-पिता और दादी के साथ बचपन में रहा था। यहीं टेरेन्स के बँगले में मिस्टर ब्रोनी और उनकी नाटक मंडली से मिल कर उसकी नज़दीकियाँ लीसा से बढ़ती जाती हैं। लीसा की तस्वीर बनाते समय ब्लाउज उतारने से इंकार करती लीसा को जवाब देता है, “प्रकृति भी तो नग्न है। पेड़, पहाड़, नदी, समुद्र सभी नग्न होते हैं। वे तो मना नहीं करते कि मेरा स्केच नहीं बनाओ।”

“वे अपने आप में कपड़े पहने हैं, ज़ेवर पहने हैं। उनकी नग्नता प्राकृतिक है। कुछ भी उतार नहीं सकते।”

इस तरह के संवाद लेखिका ने बहुत खुल कर पर शालीनता से लिख कर कथानक को रोचक बनाया है। 

रॉबर्ट लीसा पर गहरे चुंबन से उसके शरीर और मन पर अपना प्यार अंकित करता रहता है। रॉबर्ट प्रायः लीसा की मासूमियत और फ्लावरड्यू की रूढ़ता की तुलना किए बिना नहीं रह पाता। 

यहीं लेखिका टेरेन्स की माँ अगाथा की दर्द भरी कहानी को भी ख़ूबसूरती से प्रस्तुत करती है, जिसे मिस्टर ब्रोनी रॉबर्ट को सुनाते हैं। अगाथा की प्रेम कहानी में दर्द को रोचकता से संवादों में ढाला गया है, जिससे पाठक बराबर जुड़ा रहता है और उसमें जिज्ञासा बनी रहती है। 

लंदन आ कर वह लीसा का नाटक देखता है और उसके साथ एकाकार हो जाता है। उनके प्रगाढ़ शारीरिक संबंधों को लेखिका ने खुल कर अभिव्यक्ति दी है। मिस्टर ब्रोनी लीसा और रॉबर्ट के एक होने की बात सोचने लगते हैं। पर रॉबर्ट लीसा को फ्लावरड्यू के साथ अपनी सगाई की बात बता देता है जिसे मिस्टर ब्रोनी स्वीकार नहीं कर पाते। 

लीसा, मि. ब्रोनी और रॉबर्ट अलग होते हुए जो सोच रहे हैं, उस मनःस्थिति का वर्णन बहुत शानदार और अद्भुत ढंग से किया गया है। उनके शब्द अपने पात्रों की पीड़ा, संवेदनाएँ जीवंत कर उसका प्रभावपूर्ण चित्र खींचती चलती हैं। भावुकता में रॉबर्ट चाहता है कि काश कोई उसकी ज़िन्दगी का फ़ैसला कर देता। लीसा का यह वाक्य, “जाओ रॉबर्ट मैं तुम्हें माफ़ करती हूँ और यह अपेक्षा भी कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। औरत जितनी नम्र होती है उतनी कठोर भी।” रॉबर्ट को बहुत भावुक कर रुला जाता है। 

मिस्टर ब्रोनी लीसा का हाथ पकड़े बेरुख़ी से रॉबर्ट से विदा लेते हैं। 

टेरेन्स उसे बार-बार कहता हैं कि वह फ़ादर को बता दे कि वह लीसा से प्यार करता है पर फ़ादर को दुख पहुँचेगा, यह सोचकर वह फ़ादर को कुछ नहीं बताता। यहाँ पाठक को रॉबर्ट की संवेदनशीलता और संबंधों को निभाने की प्रवृत्ति की झलक मिलती है। 

रॉबर्ट लंदन से इंडिया के लिए रवाना होता है। जहाज़ के लंबे सफ़र में उसकी मित्रता एल्फिन नामक व्यक्ति से होती है जो उसका हमउम्र है। रॉबर्ट के साथ सेना में वह भी भर्ती हुआ है। एल्फिन से रॉबर्ट की मित्रता जीवन के अंत तक चलती है। 

टेरेंस रॉबर्ट के जाने से बहुत अकेला हो जाता है। टेरेंस अपनी माँ को बहुत प्रेम करता है और रॉबर्ट से उनकी बातें भी करता है। डोरा से वह गहरा प्रेम करता है। 

माँ से उसने डायरी लिखना सीखा। टेरेन्स फ़ादर के न रहने की सूचना पत्र में दार्शनिकता के साथ देते हुए लिखता है, “फ़ादर राॅडरिक नहीं रहे, वे अकेले थे, वैसे मृत्यु के समय सभी अकेले ही होते हैं।” 

लेखिका की शैली और संवाद पात्रों के व्यक्तित्व को जीवंत करती चलती है। 

सर्वप्रथम मद्रास आकर रॉबर्ट ड्यूटी जॉइन करता है और फिर कुछ वर्ष रहकर विवाह के लिए इंग्लैंड रवाना होता है। और पत्नी फ्लावरड्यू को साथ लेकर इंडिया आ जाता है। पत्नी फ्लावरड्यू को इंडिया पसंद नहीं है। रॉबर्ट के बार-बार स्थानांतरण से वह ऊब जाती है बरसों बीत जाते हैं और चाह कर भी फ्लावरड्यू रॉबर्ट को वापस इंग्लैंड नहीं ले जा पाती। दोनों में वैचारिक मतभेद शुरू हो जाता है। 

रॉबर्ट के एनी से मिलने जाने की बात सामने आ जाती है और फ्लावरड्यू वापस इंग्लैंड लौट जाती है और रॉबर्ट पत्नी के ऐसे रूखे व्यवहार से अवसाद की स्थिति में आ जाता है। 

लेखिका प्रमिला वर्मा जी ने लीसा, रॉबर्ट, टेरेन्स, डोरा, अगाथा, एनी, सबके प्यार भरे संवादों, उनकी शारीरिक प्रतिक्रिया, हाव-भाव को बहुत कुशलता से बुना है अगाथा के लिए प्रयुक्त ‘ठंडा गोश्त’ और डोरा द्वारा अपने पिता को दिया ‘स्टाक होल्डर’ नाम पात्रों का संपूर्ण परिचय दे जाता है। 

रॉबर्ट जब भी अकेला हुआ, उसके समक्ष कोई नारी चरित्र अवश्य उपस्थित हो जाता है और वह उसी को अपना मान उसमें डूब जाता है। चुंबनों की बौछार कर देता है। 

रॉबर्ट की अनेक स्थानों मद्रास, बेंगलोर, कलकत्ता, बर्मा, जालना में नियुक्ति होती है और सभी स्थानों के खान-पान और जीवन शैली को सरलता से कहानी में स्थान मिला है। 

सरकारी आदेशानुसार रॉबर्ट अजंता ग्राम जाता है, जहाँ जॉन स्मिथ द्वारा खोजी गई अंजता की गुफाओं के उसे चित्र बनाने हैं। इस मनचाहे काम को करने के लिए उसे निज़ाम हैदराबाद की तरफ़ से अतिरिक्त सहायता भी दी जाती है। यहीं रॉबर्ट की भेंट पारो से होती है, जो कोली जाति की लड़की है। रॉबर्ट अजंता गाँव की बारादरी में रहता है तो गाँव के लोगों में पारो भी उससे मिलने आती है। वह रॉबर्ट के लिए मिट्टी की साफ़-सुथरी प्लेट में ज्वार की घी लगी दो रोटियाँ और करडी का साग ले कर आती है। 

पारो का प्रथम परिचय देते हुए प्रमिला वर्मा जी लिखती हैं: “खुलता गेहुँआ रंग। बग़ैर ब्लाउज की ऊँची साड़ी जो ऊपर के भाग को आँचल में कसकर ढकी हुई थी। बालों का कसकर बाँधा ऊँचा जूड़ा जिसमें गुलाब के दो फूल खुँसे हुए।” सर जान स्मिथ की जानकारी को आधार बना कर रॉबर्ट 265 पेंटिंग्स बना कर अजंता की संपूर्ण जानकारी विश्व के समक्ष उजागर करता है। 

पारो बराबर उसका सहयोग करती है। उसके खाने की चिंता करती पारो, मेले में गाती नाचती पारो, अर्गन्डी के पत्तों की जानकारी देती पारो, रॉबर्ट के कोट में काला गुलाब लगाती पारो . . . सभी रूपों में वह रॉबर्ट के दिलो-दिमाग़ पर छाती चली गई और उसके न होने पर भी उसकी पायल की छम-छम उसके भीतर प्रेम की अनुगूँज उत्पन्न करती रहती है और अंततः एक दिन फ़िल्मी अंदाज़ में घोर बारिश में दोनों का भीगना और रॉबर्ट द्वारा पारो के भीगे वस्त्रों को उतारना जैसे बोल्ड दृश्यों को लेखिका ने बख़ूबी लिखा है। 

रॉबर्ट अंजता की पेंटिंग बनाने के वर्णन के साथ उसकी और पारो की प्रेम कहानी भी रोचक शब्दों में ढलती आकार ले आगे बढ़ती जाती है। 

सिम्पसन के साथ रॉबर्ट की 40 पेंटिंग्स भेजी जाती हैं। उनके जाने पर रॉबर्ट को पारो के गर्भवती होने की बात पता चलती है। 

रॉबर्ट उसे अपना बच्चा मान उसकी देखभाल करने और ज़िम्मेदारी उठाने को तत्पर है। 

फ्लावरड्यू बच्चों और रॉबर्ट के दो दोस्तों के साथ बारादरी आती है। वह भी गर्भवती है। उसे पारो के गर्भवती होने के बारे में जैसे ही पता चलता है, वह अपना आपा खो बैठती है। रॉबर्ट गाँव वालों को समझा देता है, पारो उसकी मिस्ट्रेस है, वह उसका और बच्चे की परवरिश करेगा। वह पारो की छोटी बहन पिहू की शादी का ख़र्च भी वहन करेगा। फ्लावरड्यू पत्नी के रूप में रॉबर्ट जैसे पुरुषों की मानसिकता पर क्षुब्ध होती है। घर में पत्नी और बच्चों के होते इन्हें मिस्ट्रेस भी चाहिए। पर यहाँ यह भी स्पष्ट है कि पुरुष नारी हृदय की कोमलता, विश्वास और समर्पण से प्यार करता है, जो रॉबर्ट को फ्लावरड्यू से नहीं पारो से मिलता है। फ्लावरड्यू दुःख से बोझिल होने के कारण तीन माह के गर्भ से हाथ धो बैठती है और वापस लौट जाती है। उधर पारो का बच्चा भी पेट में ही मर जाता है। पारो लगातार रॉबर्ट के साथ रहती है, दोनों एक-दूसरे की ज़रूरत बन गए थे। पारो माँ नहीं बन पा रही थी। इस को लेकर वह उदास रहती थी परन्तु रॉबर्ट पर अपना दुख ज़ाहिर नहीं होने देती थी। पारो गर्भवती थी। 

अचानक उसे मद्रास जाना पड़ा। डिलीवरी का समय नज़दीक था पर न चाहते हुए भी वह जाता है पर वापस आ कर जयकिशन ने बताया, “पारो नहीं रही सर!” पर पारो प्लेग से नहीं मरी वरन् उसे पीट-पीट कर मारा गया है, यह बात उसकी बहन पीहू से उजागर हो ही जाती है। 

रॉबर्ट ने पारो के अंतिम संस्कार की जगह चबूतरा बनवाया और उस पर लिखवाया—23 मई 1856 फाॅर माई वीलव्ड पारो-रॉबर्ट।” 

रॉबर्ट अक़्सर उस चट्टान पर बैठा करता या उस स्थान पर जाता जहाँ पारो का अंतिम संस्कार हुआ था। लोग कहने लगे थे—फिरंगी पारो के पीछे दिमाग़ी संतुलन खो चुका था। वह निरुद्देश्य जंगलों, पहाड़ों में घूमा करता था। पिहू और उसके बच्चे से मिलता, उनका सारा ख़र्च उठाता और उनके लिए आम-जामुन वाला बाग़ ख़रीद दिया था। अपनी ज़िन्दगी के न जाने कितने वर्ष रॉबर्ट ने अजंता की पेंटिग्स, केव्ज की नाप, उनका नक़्शा, उनकी देख रेख में लगा दिए। एनी उसकी जो पेंटिग्स लेकर प्रदर्शनी में गई थी, पर प्रदर्शनी में आग लग जाने के कारण चार को छोड़ सभी पेंटिंग्स जलकर नष्ट हो गई। उसे मद्रास बुला लिया गया। वहाँ उसे एनी दिखाई दी। 

रॉबर्ट ने एनी से कहा, “तुम चाहती थी ना एनी कि हमारी शादी हो?” उसने कहा, “हम लोग अजंता जाएँगे। तुम मेरे साथ रहोगी तो मैं फिर से पेंटिंग बना सकूँगा।” 

उसने कहा, “हाँ रॉबर्ट! तुम ज़रूर बनाओगे पेंटिंग। तुम्हारे अंदर बार-बार उठकर खड़े हो जाने का हुनर है। कितने भी दुख आए लेकिन तुम हारोगे नहीं।” 

कुछ दिनों बाद वे बारादरी आ गए। एनी गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। दुर्भाग्य देखिए, नौ महीनों बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। रॉबर्ट पुनः अजंता जाने लगा। कभी-कभी एनी भी साथ जाती और पेंटिंग बनाने में मदद करती। उसने ख़ूब फूल लगाए और पूरी बारादरी फूलों से लद गई। एनी ने एक लड़की को जन्म दिया और दो वर्षों के बाद दूसरी लड़की हुई। तीसरी बार जब वह गर्भवती हुई तो उसने अपनी दोनों बेटियों को लंदन भेज दिया। 

रॉबर्ट ने अजंता गुफा के बहुत सारे फोटोग्राफ्स लिए और सिलसिलेवार हस्ताक्षर करके सजाता जा रहा था। उसने बुलढाणा के जंगल, पहाड़, क़िले आदि के फोटो लिए। एनी बहुत प्रभावित थी भारत के इन मंदिरों को देखकर। उसने खजुराहो के मंदिरों को भी देखा था। रॉबर्ट उच्च रक्तचाप का शिकार हो गया था, उसकी साँसें उखड़ती रहती थीं। उसे तेज़ बुख़ार था। 

और अंततः एक दिन वह सबको छोड़ चला जाता है

इस उपन्यास में लेखिका ने घटनाक्रम को इस ढंग से आगे बढ़ाया है जिससे कथा का प्रवाह तथा रोचकता दोनों बनी रहती हैं । उपन्यास में मुख्य रूप से रॉबर्ट तथा एनी, लीसा, पारो, फ्लावरड्यू के इर्द-गिर्द पूरी कथावस्तु की बुनावट की गई है । अगाथा की बहन, पति, और उसकी सास के रूप में कुछ नकारात्मक पात्र भी उपन्यास में है जो अन्य पात्रों के बीच एक अपवाद की तरह कथा में उपस्थित है । इसके अतिरिक्त लेखिका द्वारा गढ़ा गया प्रत्येक पात्र और उसका व्यक्तित्व पूरी तरह उभर कर आया है। स्वामीभक्त नौकर जयकिशन जिसे रॉबर्ट जॉय कहता है, उसकी बीमारी की स्थिति में एक परिवार के सदस्य की तरह रॉबर्ट की देखभाल करता है। उपन्यास में शुरू से अंत तक जयकिशन रॉबर्ट के साथ है और उसकी मृत्यु के बाद भी वह परिवार के सदस्य की तरह शोकग्रस्त है। 

उपन्यास की भाषा सरल तथा सर्वग्राह्य और पात्रानुकूल है । यद्यपि इसमें अंग्रेज़ी सहित अन्य भाषाओं के शब्दों का अनेक स्थानों पर प्रयोग है किन्तु वे उपन्यास के प्रवाह को न तो असंतुलित करते हैं और न ही असहज ।

उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट है। लेखिका के अपने शब्दों में यह एक शोधपरक उपन्यास है। रॉबर्ट गिल के द्वारा बनाई पेंटिंग्स की तस्वीरें और छायाचित्र भी इस पुस्तक में  दिए गए हैं, जिससे उस काल का आभास होता है कि कैसे पेंटिंग्स वग़ैरह बनाई जाती थीं। 

डॉ. प्रमिला वर्मा जी का शोध अपनी संपूर्णता और रोचकता से अजंता की गुफाओं और उसमें समाई बौद्ध दर्शन और जैन संस्कृति को दुनिया के सामने लाने के साथ-साथ रॉबर्ट और पारो की प्रेमकथा को भी कथानक में पिरो ऐसे प्रस्तुत करता है कि पढ़ने वाला कहीं उन प्रेम दृश्यों को साक्षात्‌ घटित होता महसूस करता है तो कहीं उसमें बँध भावनाओं में बह उठता है। 

मेरे विचार से, लेखिका का यह उपन्यास कथानक, भाषाशैली, संवाद तथा उद्देश्य की दृष्टि से एक अनुपम कालजयी साहित्यिक कृति कहलाएगा, जिसने इतिहास में छिपी प्रेम कथा को प्रकट करने का जो बीड़ा उठाया, उसे पूरा किया । इस संतुलित तथा सार्थक प्रयास से प्रमिला जी ने स्वयं को साहित्य जगत में एक सफल उपन्यासकार के रूप में प्रस्थापित किया है । मैं लेखिका को उनके इस अनुपम व सार्थक सृजन के लिए हार्दिक बधाई देती हूँ तथा अपनी शुभकामनाएँ अर्पित करती हूँ। 

शकुंतला मित्तल, गुरुग्राम
शिक्षाविद और साहित्यकार

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