इश्क़ का अभिप्राय
हरिपाल सिंह रावत ’पथिक’पहले कभी कहा नहीं,
लेकिन . . .
आज जब तुम्हारे प्रश्न,
आतुरता की लीक तक आ पहुँचे हैं।
मैं कहना चाहता हूँ,
वो सब . . .
जो सँजोकर रखा है हिय में अथाह।
हाँ पहले कभी कहा नहीं,
लेकिन आज कहना चाहता हूँ।
पारंगत नहीं मैं,
इतर कातिबों की तरह,
कि आँक लूँ इश्क़ को,
पयोधि तल से, खोह से ज़मीं की,
नवरत मंडल से या अन्यत्र पैमानों से,
लेकिन जिस तरह इक पल को,
निःश्वास होने पर,
तन-मन व्यथित हो उठता है,
मैं भी वियोग से तुम्हारे,
व्यथित हो जाता हूँ,
विरह . . . की कल्पना भी,
मुझे शून्य कर देती है।
पहले कभी कहा नहीं,
लेकिन
आज जब तुम्हारे प्रश्न
आतुरता की लीक तक आ पहुँचे हैं।
मैं कहना चाहता हूँ,
कि इश्क़ से मेरा अभिप्राय,
कल तुम थी, आज तुम हो . . .
और कल तुम ही रहोगे।