ईर्ष्या की खेती
गोलेन्द्र पटेलमिट्टी की मिठास को सोख
ज़िद के ज़मीन पर
उगी है
इच्छाओं की ईख
खेत में
चुपचाप चेफा छिल रही है
चरित्र
और चुह रही है
ईर्ष्या
छिलके पर
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
और द्वेष देख रहा है
मचान से दूर
बहुत दूर
चरती हुई निंदा की नीलगाय!