इन्तज़ार
प्रकाश चण्डालियाबारिश का दौर
मैं भींगता चला जा रहा था
अंग-अंग मेरा
जूझता चला जा रहा था
बारिश भी देखी
मैंने पतझड़ भी देखा
सावन भी देखे
और गरमी में झुलसा
पर रुका इस इन्तज़ार में हूँ कि
कभी तो वसन्त आएगा जीवन में मेरे।
बारिश का दौर
मैं भींगता चला जा रहा था
अंग-अंग मेरा
जूझता चला जा रहा था
बारिश भी देखी
मैंने पतझड़ भी देखा
सावन भी देखे
और गरमी में झुलसा
पर रुका इस इन्तज़ार में हूँ कि
कभी तो वसन्त आएगा जीवन में मेरे।