हमारी लाश का यूँ जश्न
डॉ. उमेश चन्द्र शुक्लहमारी लाश का यूँ जश्न मनाया जाए
सियासतदारों की गलियों में घुमाया जाए॥
यही वह आदमी है जिसने उन्हें बेपर्द किया
जल्द फिर लौटेगा ये उनको चेताया जाए॥
लोग मर जाते हैं आवाज़ नहीं मरती कभी
गूँज रुकती नहीं कितना भी दबाया जाए॥
किसी ख़ुद्दार के ख़ुद्दारी का नामों निशां
कभी मिटता नहीं कितना भी मिटाया जाए॥
किसी का पद, कोई रुतबा, किसी हालात से यह
कभी डरता नही था कितना भी डराया जाए॥
क़लम की नोक पर तलवार थी रक्खी इसने
सदा बेख़ौफ़ था उन सबको बताया जाए॥
वह निग़हबान है अब भी सड़क से संसद तक
उसके ऐलान को उन सब को सुनाया जाए॥