हम आये शरण तेरी

01-02-2024

हम आये शरण तेरी

अमर 'अरमान' (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

हम आये शरण तेरी
कुछ ज्ञान हमें भी दो। 
हर कर पीड़ा मेरी, 
संतापरहित कर दो। 
हर कर सब दोष मेरे, 
मन पाक मेरा कर दो। 
हे! करुणा के सागर, 
मन दया मेरे भर दो। 
मैं आया शरण तेरी, 
सद्‌भाव हृदय भर दो। 
 
इस जग को बुद्ध मेरे, 
समता का ज्ञान दिया। 
अगड़े-पिछड़े सबको, 
तुमने है मान दिया। 
हे! मानवता रक्षक, 
हमें मान से तुम भर दो। 
हम आये शरण तेरी
कुछ ज्ञान हमें भी दो। 
 
वंचित नर-नारी को, 
तुमने सम्मान दिया। 
कटु योग साधना से, 
क़ुदरत को जान लिया। 
हे! सत्य तथागत, बुद्ध 
कुछ ज्ञान हमें भी दो। 
हम आये शरण तेरी
कुछ दान हमें कर दो। 
 
अस्त्र बिना ही तुमने, 
शत्रु का नाश किया। 
कर बिना शस्त्र पकड़े
हिंसा वट काट दिया। 
उस सत्य अहिंसा को, 
जन-जन में है भर दो। 
हम आये शरण तेरी, 
कुछ ज्ञान हमें भी दो। 
 
भ्रम स्वर्ग-नर्क वाला
तर्को से काट दिया। 
आडंबर के तरु को, 
तर्को से छाँट दिया। 
ख़ुद अपना दीप बनो, 
ये दीप्ति जगत भर दो। 
हम आये शरण तेरी, 
तुम दीप हमें कर दो। 
 
न खड़ग हाथ पकड़ी
ना तीर हाथ साधा। 
बिना अस्त्र-शस्त्र तुमने, 
पापी को संहारा। 
हर मेरी नीचता को, 
मन पाक मेरा कर दो। 
हे! ज्ञान, शील, करुणा
कुछ शील हमें भी दो। 
हम आये शरण तेरी
कुछ ज्ञान हमें भी दो। 
 
मानवता हित तुमने, 
सुख वैभव त्याग दिया। 
फिर मुक्ति का तुमने, 
जन-जन को ज्ञान दिया। 
हे! मानव हित रक्षक, 
मन ज्ञान से है भर दो। 
हम आये शरण तेरी
विज्ञान से मन भर दो। 
 
बिन जाँच परख करके
ना बात कोई मानो। 
मानव है जग श्रेष्ठ, 
ये राज सभी जानो। 
हे! श्रेष्ठ सृष्टि मानव, 
ये भान जगत भर दो। 
हम आये शरण तेरी, 
'अरमान' अमर कर दो। 

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