हल्दी के हाथ

01-08-2023

हल्दी के हाथ

नेहा शर्मा  (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

आज भी जब बचपन को याद मैं करती हूँ, 
कुछ यादें अलग सी गुनगुनाया करती हैं। 
याद आती है एक बच्ची जो कहानियॉं बनाती है
और एक माँ जो उस पर मुस्कुराया करती है। 
 
कल की ही बात थी मैं अँधेरे से डरती थी
तो वो घर के हर कोने में मोमबत्ती रखा करती थी। 
मैं प्रार्थना करती थी रोज़ नई-नई चीज़ों की
और वो मेरी प्रार्थना के लिए प्रार्थना करती थी। 
 
सुबह भीगे बादाम होते थे नाश्ते के साथ, 
सर्दी में काजू कोट की जेब में मिलता था। 
डॉंटती भी वो ही और चुपाती भी वो ही, 
उनके आसपास ही संसार चला करता था। 
 
बिना खाने के सोने का सवाल ही नहीं था, 
या मैं खा कर सोती थी या सोते सोते खाती थी। 
उनके हाथों से हल्दी की ख़ुशबू आती थी
मैं लेटी रहती थी, वो सर सहलाती जाती थी। 
मैं लेटी रहती थी, वो सर सहलाती जाती थी। 

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