हारा हुआ योद्धा

15-06-2023

हारा हुआ योद्धा

आलोक कुमार सातपुते (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

आम-तौर पर फ़िल्मों और टी.वी. सीरियलों में हम जीते हुए राजा के सामने हारे हुए राजा को जब भी देखते हैं, वह बेड़ियों में जकडा़ हुआ नज़र आता है उसकी गर्दन झुकी हुई होती है। भले ही वह पराजित होता है, पर एक योद्धा तो होता ही है, सो उसके प्रति सम्मान का भाव तो स्वाभाविक रूप से पनपने ही लगता है। 

रंजन एक हिन्दी दलित साहित्यकार था। उसकी रचनाएँ बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रहीं थीं। एक दिन उसे एक पत्र मिला। वह रणवीर नाम के किसी मराठी अनुवादक का था। उसने रंजन की रचनाओं के मराठी अनुवाद करने की और उसे मराठी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने की अनुमति माँगी थी। वह पत्र बडे़ ही सलीक़े से सुव्यवस्थित ढंग से लिखा गया था। पत्र लिखने का तरीक़ा बेहद विद्वतापूर्ण था। रंजन की दिली-ख़्वाहिश थी कि उसकी रचनाओं का मराठी और बंगाली में ज़रूर अनुवाद हो। क्योंकि महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में किताबें पढ़ने का कल्चर आज भी अपने पूरे शबाब पर है। लोग उपहार के रूप में किताबों का सैट देते हैं। वैसे भी महाराष्ट्र का दलित आंदोलन और साहित्य बेहद संपन्न है। ऐसे में किसी मराठी अनुवादक की पहल ने उसमें पंख लगा दिये, और उसने तत्काल ही अपनी सहमति भेज दी। अनुवादक ने उसकी कुछ रचनाओं का अनुवाद करके मराठी दलित आन्दोलन की पत्रिकाओं में भेजना शुरू कर दिया। 

रंजन अपने इस अनुवादक मित्र से मिलने को बेताब था। रंजन पहली बार भोपाल जाते हुए उससे नागपुर के रेलवे स्टेशन पर थोड़ी देर के लिये ही मिल पाये था। हालाँकि उसका वह मित्र उससे 25 वर्ष बड़ा था, पर साहित्यिक मित्रता में उम्र कोई मायने नहीं रखती है। वे दोनों ही साहित्यिकार थे इसलिये वैचारिक रूप से वे हमउम्र ही थे। इधर रंजन के दलित मुद्दों पर लिखे गये आलेख बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं में लगातार छप रहे थे। इन आलेखों का रणवीर द्वारा किया गया मराठी अनुवाद भी मराठी दलित साहित्य की पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छप रहा था। कुछ दिनों बाद रंजन को नागपुर जाने का अवसर मिला। वह रणवीर से मिलने उसके घर पहुँचा। उनका छह कमरों वाला घर था। वे लोग तीन कमरों में रहते थे, और उन कमरों के समानान्तर तीन कमरे और थे। इन तीनों कमरों में हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी की किताबें भरी हुई थीं। वहाँ एक स्टडी टेबल और एक डबलबेड का पलंग भी था। रणवीर की किताबों की लॉयब्रेरी बहुत सम्पन्न थी। उसने अपनी किताबों के बारे में बडे़ गर्व से बताया कि कौन-सी किताब उसने कहाँ-से और किन परिस्थितियों में ली, और किस किताब को उसने मुँहमाँगी क़ीमत पर ख़रीदा। तक़रीबन 20 से पच्चीस हज़ार किताबें रही होंगी उसके पास। वाक़ई में वह ज्ञान के ख़जाने का मालिक था। वह गर्व से बताने लगा कि पूरे महाराष्ट्र में उनकी जितनी बड़ी निजी लायब्रेरी किसी के पास नहीं है। 

समय बीतता गया। इस दौरान रंजन का कई बार रणवीर के घर आना-जाना हुआ। उनके घर जाने पर रंजन को वापस लौटने की इच्छा नहीं होती थी। आज के दौर में किसी के यहाँ एक दिन भी रुकना मुश्किल है, वहीं पर रंजन उनके घर चार-पाँच दिनों तक रुक जाता, और किताबें पढ़ता रहता। वे दोनों किताबों में ही मगन रहते, और सिर्फ़ खाना खाने के लिए ही बग़ल के तीन कमरों में जहाँ पर रणवीर का परिवार रहता था, उस ओर जाया करते थे। पहली बार तो रंजन को कुछ अहसास ही नहीं हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उसेे समझ में आने लगा कि रणवीर के घर में अजीब क़स्म की मुर्दनी पसरी हुई रहती है। उसकी पत्नी अँधेरे कोने में बैठकर रोती रहती है। उनकी एक सत्रह-अठारह साल की बेटी सुबह के दस बजे तक सोती रहती है। उसकी एक शादीशुदा बेटी भी है, जो कभी-कभी ही आती है, और उस दौरान वह अपने पिता से ऊँची आवाज़ में कुछ-कुछ कहती है। हालाँकि यह सब उनका बिल्कुल ही निजी मामला था, पर रंजन अक़्सर अपने उस मित्र को परेशान होते हुए देखता था। रंजन को लगा कि शायद वह रणवीर की कुछ मदद कर सकता है। यह सोचकर एक दिन उसने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा। अब तक वे लोग एकदम क्लोज़ हो चुके थे। इस पर रणवीर ने बताया कि उसके तीन बच्चे हैं। सबसे बड़ा लड़का है। वह अपराधी क़िस्म का है। वह लोगों से नौकरी दिलाने के नाम पर पैसा ठग लेता है, और उन पैसों से अय्याशी करता है। लोग उसका पता पूछते हुए मेरे पास आते, और मुझ पर पैसा देने के लिए दबाव बनाते थे, सो मैंने पूरी क़ानूनी प्रक्रिया करके अपने उस बेटे के साथ अपने सारे सम्बन्ध ख़त्म कर लिये। मैंने अख़बारों में विज्ञापन भी जारी करा दिया कि मेरा अपने उस पुत्र से कोई सम्बन्ध नहीं रह गया है। मैं तो उसे अपने घर में घुसने भी नहीं देता हूँ। मेरी अनुपस्थिति में ज़रूर वह गुपचुप तरीक़े से आता है, और अपनी माँ से मिलता रहता है। चूँकि उसकी माँ उसकी अंधभक्त है, सो वह मेरे सामने उसका रोना लेकर बैठ जाती है, और रुपयों-पैसों से उसकी मदद करने को कहती है। उसके बाद की मेरी बड़ी बेटी है। मैंने बडे़ अरमानों से उसे पढ़ाया-लिखाया, उसकी शादी की, लेकिन अपनी माँ के ख़राब संस्कारों की वजह से वह अपनी ससुराल में तीन माह भी नहीं रह पाई और उसने अपने पति से तलाक़ ले लिया। मुझे अपनी बड़ी लड़की से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन वह भी नालायक़ निकली। तलाक़ लेकर वह मेरे ही घर में रहना चाह रही थी, लेकिन मैंने उसे भगा दिया। मैंने उससे स्पष्ट कह दिया है कि मैं तुम्हें पालने वाला नहीं हूँ। ख़ुद कमाओ और अलग रहो। आजकल वह एक प्रायवेट स्कूल में टीचर का काम करती है, और वहीं कहीं रहती है। वह भी अपनी माँ से ही मिलने आती है, और मैं सामने पड़ जाता हूँ, तो मुझसे लड़ने लगती है कि मैंने उनकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है। छोटी लड़की तो पूरी बिगडै़ल है। वह तो कई-कई दिनों तक घर से ग़ायब ही रहती है। हमें बताती है कि कॉलेज़ टूर में जा रही हूँ, लेकिन वह आवारा लड़कों के साथ घूमती रहती थी। दो चार-बार तो महिला पुलिस इसे घर तक छोड़ गई है। वह ड्रग भी लेने लगी थी। है तो मात्र सत्रह साल की, लेकिन इसके रंग-ढंग बेहद ख़तरनाक हैं। मैं तो अब उसे घर से बाहर ही नहीं निकलने देता। मैंने उसकी पढ़ाई छुड़ा दी है। वो जैसे ही अठारह की होगी, उसकी शादी करा दूँगा। यार रंजन मैं इतना प्रतिष्ठित व्यक्ति हूँ। महाराष्ट्र के तमाम दलित संगठनों को मैं नियमित रूप से चंदा देता रहता हूँ। तमाम तरह के दलित आंदोलनों में मैं बढ़-चढ़कर भाग लेता रहता हूँ। लोग मुझे एक बडे़ आन्दोलनकारी के रूप में जानते हैं, लेकिन मेरे अपने परिवार ने ही मेरी नाक कटा दी हैं। खै़र मैं किसी की परवाह नहीं करता हूँ। मेरा लक्ष्य है आन्दोलन, आंदोलन और सिर्फ़ आंदोलन। लड़ाई, लड़ाई और सिर्फ़ लड़ाई। संघर्ष, संघर्ष और सिर्फ़ संघर्ष। ये सारी बातें बताते-बताते गणवीर उत्तेजित हो गया था। बात निकल ही गई थी तो रंजन को लगा कि लगे हाथ उनकी पत्नी के कोने में बैठकर रोने का कारण भी पूछ ही लेता हूँ। उसके पूछने पर रणवीर ने बताया कि शादी के पहले वह एक सरकारी स्कूल में टीचर थी। चूँकि मैं दलित आंदोलनों में बिज़ी रहता था, सो मेरे पीछे घर की देखभाल करने के लिए अपनी पत्नी को नौकरी नहीं कराना चाहता था, और इसलिये मैंने उसकी नौकरी छुड़वा दी। 

रंजन ने उनकी पुरुषवादी सोच को पुष्ट करते हुए कहा, “हाँ भाई, आप इतने बडे़े पद पर हैं। लगभग एक लाख रुपये आपकी सैलरी है, तो आपको भला अपनी पत्नी को नौकरी कराने की ज़रूरत ही नहीं है। इस पर उन्होंने मुझे फुसफुसाते हुए बताया, “अरे यार मैं तो अपनी तनख़्वाह का लगभग 50 प्रतिशत तो किताबें ख़रीदने में निकाल देता हूँ। और लगभग तीस प्रतिशत तो विभिन्न दलित आंदोलन से जुडे़ हुए संगठनों को दान में दे देता हूँ। मैं अपनी पत्नी को घर ख़र्च के लिए दस से बीस प्रतिशत के बीच ही देता हूँ। ऐसा मैं शुरू से कर रहा हूँ। मेरी औरत मुझसे कहती है, तुमने हमें बर्बाद कर दिया है। अब रंजन तुम्हीं बताओ यार कि हम जैसे प्रबुद्ध लोग आंदोलनों में ख़र्च नहीं करेंगे, तो कौन करेगा। 

रणवीर की अव्यावहारिक सोच, और उनके घर की परिस्थितियों के बारे में जानने के बाद रंजन का उनसे मोह भंग होनेे लगा था। अब उसने उनके घर जाना बहुत कम कर दिया था। कुछ महीनों बाद रणवीर रिटायर हो गया। रिटायरमेण्ट के वक़्त उसे लगभग पचास लाख रुपये मिले थे। वह रंजन को अपना बेेहद भरोसेमंद साथी मानता था। लेकिन सारे हालात जानने के बाद रंजन उन पर भरोसा नहीं कर पाता था। एक बार रणवीर, रंजन के घर पर आया। वह बेहद डरा हुआ था। उसने बताया कि रिटायरमेण्ट के बाद मुझे मिले हुए रुपयों को हड़पने के लिए मेरी औरत और मेरे तीनों बच्चे एक हो गये हैं। और वे मुझे मार डालना चाहते हैं। अब मैं उनके साथ नहीं रह सकता। मैं सोच रहा हूँ कि अपनी पत्नी से तलाक़ ले लूँ, क्योंकि मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता कि मेरे जीते जी या मेरे मरने के बाद मेरा पैसा इन नालायक़ों के हाथ लगे। पहले मैंने सोचा कि वकील बुलवाकर अपनी एक वसीयत बनवा लूँ जिसमें अपनी सारी किताबों और नगद राशि दलित आंदोलन से जुडे़ संगठनों को दान कर दूँ। पर वकील ने क़ानूनी समस्या बताई। 

रंजन, रणवीर को बेहद ज्ञानी मानता था, लेकिन उनकी यह बात उसे बेहद मूर्खतापूर्ण लग रही थी। उम्र में उससे बहुत छोटा होने के बावजूद उसने रणवीर को उसके परिवार के क़रीब लाने की कोशिश की, पर परिवार का ज़िक्र आते ही वह बेहद भड़क जाता था। और भड़कर कहता था कि आंदोलनकारी यूँ ही हार थोडे़ मानता है। अरे मैं आंदोलन से जुड़ा हुआ आदमी हूँ। ऐसे कैसे किसी से भी समझौता कर लूँ। यदि मेरी पत्नी शोषक है, तो मैं उसके ख़िलाफ़ लड़ूँगा, यदि मेरे बच्चे मेरे साथ अन्याय करते हैं तो मैं उनके ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करूँगा। हालाँकि रंजन अब तक यह जान चुका था, कि अपने परिवार की वर्तमान हालत के लिए रणवीर ख़ुद ज़िम्मेदार था। वह ख़ुद एक शोषक था, वह ख़ुद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय कर रहा था। चूँकि परिवार का ज़िक्र करने पर रणवीर बेहद उत्तेजित हो जाता था, और उसका बीपी हाई हो जाता था, सो अब रंजन ने उसके सामने उसके परिवार के बारे में बातें करनी छोड़ दी थीं। पर चूँकि रणवीर तलाक़ और वसीयत के बारे में रंजन की राय जानना चाह रहा था, सो उसने उसेे टालने के उद्देश्य से कह दिया कि आपका अपना विवेक जो कहता है, वो करिये। वैसे भी वह रणवीर को समझा-समझाकर थक गया था कि आपका परिवार आपका दुश्मन नहीं है। आप अपने रुख़ में थोड़ा परिवर्तन तो लाओ। कुछ दिनों बाद रणवीर ने रंजन को फोन पर बताया कि उसने अपनी पत्नी से तलाक़ लेने के लिए केस दायर कर दिया है। अब वह अपने घर से अलग अकेला रहता है। इसके अलावा उसने रंजन को यह भी बताया कि उन्होंनेे एक दलित आंदोलनकारी संगठन को दान करने के लिए तीन लाख रूपये बैक से निकाल कर रखे थे, वो चोरी हो गये। और उसे पक्का पता है कि इस चोरी में मेरे लड़के और छोटी लड़की का हाथ है, इसलिए मैंने उनके ख़िलाफ़ भी पुलिस में चोरी की रिपोर्ट लिखा दी है। 

रंजन को अब रणवीर बातों से ऊब-सी होने लगी थी, सो उसने अपनी तरफ़ से उसे फोन करना बंद कर दिया था। हाँ रणवीर की तरफ़ से नियमित फोन आता रहता था। और रणवीर कल ही रंजन के घर आया था। वह बेहद हताश और निराश था। रंजन उसकी मनःस्थिति से पूरी तरह परिचित था। वह अभी ही उसे एक मनोचिकित्सक के पास लेकर गया था। डॉक्टर ने उसे नींद की दवाइयाँ दी थीं, जिसके प्रभाव में वह गहरी नींद सो रहा था। रणवीर के बारे में सोचते हुए रंजन को उसमें बरबस ही हारे हुए योद्धा की झलक दिखाई दे गई थी। 

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