गर है कहीं तो आकर
पंकज 'होशियारपुरी'गर है कहीं तो आकर
जलवा दिखा मुझे
गर है नहीं तो निजात
वहम से दिला मुझे
तेरे फरेब ने ता-उम्र
रेशाँ मुझे रखा
मेरे यकीन से भी,
न कुछ हासिल हुआ मुझे
एक बिसात सी बिछी है,
तेरे इश्क की जहाँ मे
तेरे दर का ही न बस
कहीं पता चला मुझे
ज़िन्दगी जो तेरी थी
तो मैं कहाँ पे था
किसका हिसाब दूं तुझे,
अब तू ही बता मुझे
यह दैर-ओ-हरम है क्या,
यह मैख़ाने हैं किसके
ऐ साकी कहीं पिला,
लेकिन पिला मुझे