गहरा निःश्वास
प्रो. नव संगीत सिंहपंजाबी कहानी
मूल कहानी लेखक: रविंदर सिंह सोढी
अनुवादक प्रो. नव संगीत सिंह
मोबाइल फोन की घंटी फिर बजी। अजीत ने मोबाइल पर देखा, लेकिन उठाया नहीं। पिछले आधे घंटे से एक ही नंबर से पाँच-छह कॉलज़ आ चुकी थीं, लेकिन अजीत ने एक बार भी बात नहीं की। उसके बेड के बग़ल में पड़ी छोटी टेबल पर एक पेग भी बना हुआ था। वह बार-बार सामने की दीवार पर लगी सीमा की फोटो को देख रहा था। कभी-कभी बेड पर पड़ी सीमा की फ़्रेम में लगी फोटो को दोनों हाथों में उठाकर उसे निहारने लगता। ऐसा करते समय उसका गला रुँध जाता।
अभी कुछ साल पहले ही उसकी पत्नी बिस्तर के दूसरी तरफ़ पड़ी थी। हालाँकि बीमारी के कारण वह ज़्यादा चल-फिर नहीं पाती थी, लेकिन अजीत के लिए सीमा का साथ होना ही काफ़ी था।
आज पुरानी यादों ने अजीत के दिलो-दिमाग़ में बेचैनी सी पैदा कर दी।
अजीत और सीमा अपनी इकलौती बेटी राबिया के साथ ख़ुशहाल जीवन जी रहे थे। विश्वविद्यालय के दो साल पूरे करने के बाद, राबिया को क़ानून की आगे की पढ़ाई के लिए न्यूयॉर्क के एक विश्वविद्यालय में दाख़िला मिल गया। अजीत और सीमा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि वह शिकागो के ही किसे बढ़िया विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर ले, लेकिन राबिया ने इन्कार कर दिया था। वह अमेरिका के किसी स्थापित विश्वविद्यालय से ही वकालत की पढ़ाई करना चाहती थी। न्यूयॉर्क में पढ़ाई एवं रहने का बहुत ख़र्च होना था। ख़र्च की उनको ज़्यादा परवाह नहीं थी, क्योंकि अजीत की मिलवाकी में अकाउंटेंसी की अपनी फ़र्म थी और सीमा की नर्सिंग की नौकरी। यद्यपि वह सप्ताह में दो या तीन बार ही काम पर जाती। वे चाहते थे कि राबिया किसी निकट की यूनिवर्सिटी में दाख़िला ले ले, ताकि वे उसे महीने में दो बार मिल आया करें। अंततः उन्हें राबिया की बात से सहमत होना पड़ा।
कभी-कभी जब ज़िन्दगी में मोड़ आने लग जाएँ तो जीवन की दिशा ही बदल जाती है। राबिया घर से दूर क्या गई, अजीत और सीमा के लिए तो समय काटना ही मुश्किल हो गया। अजीत तो फिर भी दिनभर अपने काम में व्यस्त रहता, लेकिन सीमा के लिए घर में अकेले रहना मुश्किल हो गया था। यह तो नहीं था कि राबिया सारा दिन अपनी माँ के पास ही बैठी रहती थी। उसका अपना आधा दिन तो विश्वविद्यालय में ही व्यतीत हो जाता। घर आकर वह अपने कमरे में घुस जाती या अपनी किताबों में खो जाती। सप्ताह में चार दिन वह तैराकी के लिए जाती थी। वह पढ़ाई में भी होशियार थी। घर में वह अपनी कोई ना कोई असाइनमेंट करती रहती थी। शनिवार, रविवार को वह कभी अपने दोस्तों के साथ बाहर चली जाती तो कभी कोई सामाजिक कार्य के लिए घर से बाहर रहती थी। लेकिन फिर भी सीमा उसका इंतज़ार करती रहती। राबिया के न्यूयॉर्क जाने के बाद तो यह इंतज़ार भी ख़त्म हो गया। सीमा अकेली बैठी रहती और उसे डिप्रेशन रहने लगा। उसकी ऐसी हालत देखकर अजीत ने जल्दी घर आना शुरू कर दिया। उसने सीमा से कई बार कहा भी कि उसे अपने काम पर ज़्यादा समय लगाना चाहिए, ताकि उसका मन लगा रहे, लेकिन वह नहीं मानी।
अजीत ने अपने एक क़रीबी दोस्त डॉ. राघव को फोन किया और सीमा के बारे में बात की। राघव ने उसे दो दिन बाद आने के लिए कहा। नियत दिन पर अजीत और सीमा डॉ. राघव के क्लिनिक पहुँचे। डॉ. राघव ने सीमा का अच्छी तरह से चेक-अप किया और कई बातें पूछीं। सीमा ने बताया कि पिछले एक महीने से उसकी भूख कम हो रही है, थकान भी जल्दी हो जाती है और उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसके कपड़े भी ढीले होते जा रहे हैं। जब राघव ने सीमा का वज़न चेक किया तो उसका आख़िरी रूटीन चेक-अप के बाद से वज़न लगभग छह किलो कम हो गया था। डॉ. राघव कुछ चिंतित हो गए। उन्होंने सीमा को कुछ परीक्षण बताए और बायोप्सी करवाने के लिए कहा।
हफ़्ते बाद जब डॉक्टर को सीमा की रिपोर्ट्स मिलीं तो वह भी घबरा गए। उन्होंने रिपोर्ट्स दो-तीन बार देखीं और झट से अजीत को फोन किया कि वह ऑफ़िस से फ़्री होकर उसे क्लिनिक में मिले। राघव की बात सुनकर अजीत थोड़ा घबरा गया। वह ऑफ़िस से डॉ. राघव के पास दौड़ा। राघव अभी अपने मरीज़ों को देख रहा था। लगभग आधे घंटे के बाद जब वह फ़्री हुए तो ही अजीत डाॅक्टर से मिल पाया। अजीत को देखकर राघव ने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और अपने कंप्यूटर से रिपोर्ट्स वाली फ़ाइल निकाली, लेकिन बोला कुछ नहीं। डॉ. राघव की चुप्पी से अजीत घबरा गया और बोला, “क्या सब कुछ ठीक तो है?”
“अगर सब ठीक होता तो मैं तुम्हें अकेले में नहीं बुलाता।”
“क्या बात, समथिंग सीरियस!”
“सिर्फ सीरियस ही नहीं, बट वेरी सीरियस,” यह कहते हुए राघव अपनी कुर्सी से उठे और अजीत के पास आए। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “सीमा इज़ डायगनोज़ड विद ब्लड कैंसर ऐंड दैट टू विद एडवांस स्टेज।”
“ओ नो, राघव, नो।”
“साॅरी अजीत, मैं तुम्हें झूठी तसल्ली नहीं दे सकता। ऐंड प्रॉब्लम इज़ दिस, सीमा हरसेल्फ इज़ ए नर्स ऐंड वी कांट कीप इट ए सीक्रेट। मोरओवर, पेशेंट से सच्चाई छिपानी भी नहीं चाहिए। जितनी जल्दी हो सके, पेशेंट को असली बीमारी का पता लगना चाहिए। एक बार तो उसे शाॅक लगता है, लेकिन धीरे-धीरे वह बीमारी को फ़ेस करने के लिए मेंटली तैयार हो जाता है।”
“इलाज!” एकमात्र शब्द था, जो अजीत के मुँह से बड़ी मुश्किल से निकला।
“कुछ और परीक्षण करने होंगे। उनकी रिपोर्ट्स आने के बाद देखते हैं,” इतना कहकर डॉक्टर चुप हो गए। उन्होंने अजीत के दोनों कंधों पर हाथ रखकर कहा, “अजीत, आम लोगों की नज़र में मेडिकल साइंस ने बेशक बहुत प्रगति की है, लेकिन बीइंग ए डाॅकटर आई नो वेरी वेल दैट फाॅर द टाइमबीइंग मेडिकल साइंस हैज़ इट्स ओन लिमीटेशनज़। यू आर वेरी कलोज़ टु मी। वी विल ट्राई अवर बेस्ट टु सेव सीमा, बट हर रिपोर्ट्स आर नॉट फ़ेवरेबल। आई डोंट वांट टु गिव यू ए फ़ाल्स होप। दिस इज़ वेरी कलियर। मैं ब्लड कैंसर विशेषज्ञ डॉ. रद्रफोर्ड के साथ केस डिस्कस किया है। मैंने उनसे सभी रिपोर्ट्स भेज दी हैं। उन्हें रिक्वेस्ट की है कि शीघ्र ही सीमा को चेक करके ट्रीटमेंट शुरू करें। लेट्स वेट फ़ॉर हिज़ काॅल।”
दो दिनों के बाद ही डाॅ. रद्रफोर्ड का फोन आ गया। उन्होंने अगले दिन ही सीमा को बुलाया था। सीमा को पता था कि रद्रफोर्ड तो ब्लड कैंसर का सबसे अच्छा डॉक्टर है। उनसे तो दो-तीन महीने से पहले टाइम ही नहीं मिलता। उसे आश्चर्य हुआ कि वे डॉ. रद्रफोर्ड के पास क्यों जा रहे थे? उसने अजीत से पूछा भी, लेकिन अजीत ने गोलमोल जवाब दिया कि डॉ राघव ने ही रेफ़र किया है। सीमा मन ही मन चिंतित थी कि क्या उसे ब्लड कैंसर है और यदि हाँ, तो कौन सी स्टेज है? उसे लगा कि पिछले चार-पाँच दिनों से अजीत कुछ चुप-चुप सा है। क्या अजीत को उसकी बीमारी के बारे में पता है? और अगर पता है तो उसने बात क्यों नहीं की? सीमा को संदेह था कि कुछ तो गड़बड़ है। एक नर्स होने के कारण उसे अपने शरीर के बदलते लक्षणों से यक़ीन हो गया कि उसे ब्लड कैंसर है। जब डाॅ. राघव ने बायोप्सी करवाने के लिए कहा था, तब भी उसे कुछ संदेह हुआ था।
अगले दिन, जब सीमा और अजीत डॉ. रद्रफोर्ड के पास पहुँचे तो डॉक्टर का पहला वाक्य सुनकर ही सीमा सुन्न हो गई। ”साॅरी सीमा, यू आर डायग्नोज़ड विद लियुकीमिया। डाॅ. राघव हैज़ डन राइट थिंग बाए रिकमेंडिंग बायोप्सी आलसो। आइ ऐम रिकमेंडिंग टू मोर टेस्टस ऐंड आफ़्टर दैट आइ विल स्टार्ट माइ ट्रीटमेंट। बट वन थिंग इज़ वेरी कलियर दैट दियर इज़ नो अदर ऑप्शन दैन कीमोथेरेपी। ऐज़ यू आर ए क्वालीफ़ाईड नर्स, यू नो वेरी वेल अबाउट द साइड एफ़ेक्टस ऑफ़ कीमोथेरेपी। बी ब्रेव, ऐंड कीप युअर विल पॉवर स्ट्रोंग।”
इसके बाद डॉक्टर ने और भी कई बातें पूछीं। सीमा कई बातों का उत्तर दे देती थी और कभी-कभी उसकी जगह अजीत को उत्तर देना पड़ता था, क्योंकि सीमा कुछ बोल नहीं सकती थी।
डॉक्टर के पास से लौटते समय सीमा ने कोई बात नहीं की। वह आगे की सीट पर बैठने के बजाय पीछे की सीट पर लेट गई। अजीत को भी समझ नहीं आ रहा था कि वह सीमा से क्या बात करे। अजीत समझ रहा था कि उस समय सीमा की मनोदशा क्या थी। अचानक ही ब्लड कैंसर की बात सुनकर उसका चुप हो जाना स्वाभाविक था।
सीमा की आँखों के सामने अँधेरा-सा छा गया। कार की पिछली सीट पर लेटे हुए उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह किसी गहरी खाई में गिरती जा रही है। वह मदद के लिए किसी को पकड़ने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसके हाथों में कुछ नहीं आ रहा। वह अजीत और राबिया को आवाज़ें लगा रही है, लेकिन उसकी आवाज़ ही नहीं निकल रही। कभी-कभी उसे ऐसा महसूस होता जैसे कोई बड़ा-सा पक्षी उसे अपने पंजों में पकड़कर आसमान की ओर उड़ा जा रहा है। वह उसके पंजों से बचने के लिए संघर्ष कर रही थी, लेकिन पंजों की पकड़ और मज़बूत होती जा रही थी। वह देख रही थी कि अजीत और राबिया नीचे खड़े थे, लेकिन उसको बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे थे। गाड़ी चलाते समय अजीत ने कई बार पीछे मुड़कर देखा। उसके मन में भी बहुत बुरे से ख़्याल आ रहे थे। उसे कार चलाने में भी दिक़्क़त हो रही थी। वह कार पार्क करके कुछ देर आराम करना चाहता था, लेकिन फिर उसने सोचा कि जल्दी से घर पहुँच कर सीमा को आराम के लिए एक बैड पर लिटा दिया जाए।
थोड़ी देर बाद वह घर पहुँच गया। सीमा कार की पिछली सीट पर ही पड़ी रही, जैसे वह सो गई हो। अजीत ने दो-चार आवाज़ें भी लगाईं पर सीमा नहीं उठी। अजीत ने कार को गैराज में लगाने की बजाय ड्राइव वे पर ही रोक दिया और ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद उसने आकर कार का पिछला दरवाज़ा खोला और सीमा को हिलाया। सीमा एक झटके से उठी। अजीत ने उसका हाथ पकड़कर उठाने की कोशिश की, लेकिन वह ख़ुद ही बाहर आ गई। दोनों बिना कुछ बोले अंदर चले गए।
सीमा अपने बिस्तर पर चली गयी। अजीत रसोई में जाकर चाय बनाने लगा। वह चाय के साथ कुछ स्नैक्स भी ले आया। दोनों ने चुपचाप चाय पी।
थोड़ी हिम्मत करके अजीत सीमा के पास बैठ गया और उसका हाथ पकड़कर बोला कि आजकल हर बीमारी का इलाज मौजूद है। राघव ने मुझे बताया था कि रद्रफोर्ड कैंसर के सबसे अच्छे डॉक्टर हैं। यह तो अच्छा हुआ कि हमें समय रहते पता चल गया। पाँच-चार कीमोथेरेपी के बाद तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी।
अब तक सीमा ने ख़ुद को कुछ हद तक सँभाल लिया था। उसने अजीत की ओर प्यार से देखा और हल्की-सी मुस्कान के साथ कहा, “होप फ़ॉर द बेस्ट! ऐंड बी परीपेअर फ़ॉर द वर्स्ट!”
“कैसी बातें कर रही हो तुम?” इतना कहते हुए अजीत ने सीमा को अपनी गले से लगा लिया। हालाँकि उसने ख़ुद को संयत रखने की बहुत कोशिश की, फिर भी वह अपनी आँखों के रुके नमकीन पानी नहीं रोक सका। सीमा का भी यही हाल था।
दस दिन बाद सीमा की कीमोथेरेपी शुरू हो गई। कीमोथेरेपी ने अपना असर भी दिखाना शुरू कर दिया।
अपनी माँ की बीमारी के बारे में सुनकर राबिया भी कुछ दिनों के लिए घर आई। उसने अपने डैड से कहा कि वह फ़िलहाल अपना एक कोर्स ड्राप करके मम्मी के पास रहेगी। लेकिन अजीत नहीं माना। उसने सीमा की देखभाल के लिए एक नर्स की व्यवस्था कर ली। और ख़ुद भी जल्दी घर आना शुरू कर दिया।
अजीत को पता था कि सीमा अपनी बीमारी के कारण मानसिक रूप से परेशान है। वह सीमा के साथ जितना सम्भव हो सकता, उतना समय बिताने की कोशिश करता था। एक तरह से उसने अपनी फ़र्म का काम अपने एक-दो भरोसेमंद लोगों पर छोड़ दिया था, लेकिन फिर भी उसे कुछ समय के लिए कार्यालय में जाना ही पड़ता। वह बहुत कोशिश करता कि सीमा अपनी बीमारी को कुछ समय के लिए भूलकर और अन्य चीज़ों में अपना दिल लगाने की कोशिश करे। सीमा भी यह सब महसूस कर रही थी। कभी-कभी अजीत को ऐसा लगता था जैसे सीमा अपनी उम्र पूरी कर रही है। यह सोचते ही उसके मन में एक हूक सी निकल जाती। कितनी मेहनत से उसने सीमा के साथ मिलकर यह घर बनाया था। उसे याद आया जब वह अपनी शादी के तुरंत बाद अमेरिका आ गये थे, तो उन दोनों को कितनी मेहनत करनी पड़ी थी। कभी उसने टैक्सी चलाई, कभी उसने किसी स्टोर में काम किया। वह दिन में दो-दो शिफ़्टों में काम करता था और परन्तु सीमा को काम नहीं करने देता था, ताकि वह अपने नर्सिंग के पेपर पास कर सके। सीमा ने चूँकि भारत से नर्सिंग की थी और वह पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी, इसलिए उसने दो साल में पेपर पास कर लिये और उसे नौकरी भी मिल गयी। उसके बाद अजीत ने अपना काम कुछ कम कर दिया और सीपीए की पढ़ाई शुरू कर दी। तीन साल में ही उसने सारे पेपर पास कर लिए और एक अकाऊंटस फ़र्म में काम करने लग गया। इसी बीच राबिया का जन्म हुआ। तीन साल की नौकरी के बाद अजीत ने अपनी ख़ुद की अकाऊंटस फ़र्म खोल ली।
अजीत ने सीमा से कई बार सुना था कि वह ख़ुद को भाग्यशाली मानती है कि उसे अजीत जैसा जीवन साथी मिला, जो मेहनती होने के साथ-साथ सीमा के प्रति ईमानदार भी है। सीमा कई बार मज़ाक़ मज़ाक़ में अजीत को कह भी देती थी कि हमेशा उसे ही परेशान करते रहते हो, कभी इधर-उधर भी झाँक लिया करो। उसकी ऐसी बातें सुन कर अजीत हँस देता था।
कीमोथेरेपी के कारण सीमा के सर के बाल पूरी तरह झड़ गए और शारीरिक रूप से भी वह काफ़ी कमज़ोर हो गई थी। उसे बिस्तर से उठने में भी दिक़्क़त होती थी। एक दिन रविवार को अजीत घर पर ही था। राबिया ने फोन करके बताया कि वह कुछ दिनों के लिए उनके पास आ रही है। सीमा से ज़्यादा बोला नहीं जाता था। अजीत ने ही राबिया से बात की। उसी ने अपनी ओर से राबिया को यक़ीन दिलाया कि सीमा अब पहले से बेहतर महसूस कर रही है।
राबिया से बात करने के बाद अजीत ने सीमा की ओर देखा। सीमा के चेहरे पर परेशानी झलक रही थी। उसने अजीत को अपने क़रीब आने का इशारा किया। जब अजीत उसके क़रीब आया तो सीमा ने उसे सहारा देकर बिठाने का इशारा किया। सीमा के चेहरे से लग रहा था कि उसे बैठने में भी दिक़्क़त हो रही है, लेकिन वह बैठी रही। उसने अजीत के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। उसकी आँखें नम थीं। “अब और तकलीफ़ नहीं सही जाती,” इतना कहकर सीमा फूट-फूट कर रोने लगी। अजीत का भी गला रुँध आया।
“सीमा, अभी तो बस दो कीमोथेरेपी और हैं। उसके बाद सब ठीक हो जाएगा,” अजीत की अपनी आँखें बेशक भर आईं थीं, तो भी उसने सीमा की आँखें पोंछते हुए कहा।
“नहीं अजीत, यह झूठी तसल्ली है। मुझे लगता है कि मैं ज़्यादा देर तक तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊँगी,” इसके बाद उससे कुछ नहीं कहा गया।
“सीमा, तुम ऐसा क्यों कहती हो? तुम्हें कुछ नहीं होगा। अभी हमें दोनों ने साथ-साथ बहुत काम करने हैं। राबिया की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद हम उसके साथ यूरोप की सैर का प्रोग्राम बनाएँगे। उसकी शादी भी करनी है। उसकी शादी के बाद मैं अपना काम काफ़ी हद तक कम कर दूँगा, ज़्यादा समय तुम्हारे साथ घर पर रहूँगा या सैर-सपाटा,” अजीत ने फीकी सी हँसी के साथ कहा।
“अजीत, मेरा मन भी अभी जाने को नहीं कर रहा, लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंज़ूर है। सच तो यह है कि मैं अभी मरना नहीं चाहती . . .”
अजीत ने सीमा के मुँह पर हाथ रखकर उसे चुप कराने की कोशिश की।
सीमा ने उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा, “अजीत, मैं कुछ दिनों से तुमसे दिल की बातें करना चाहती थी, लेकिन हिम्मत नहीं हो पा रही थी। प्लीज़, आज मुझे मत रोको। कहीं मेरे मन की बातें मन ही में न रह जाएँ।”
अजीत सीमा से कोई उल्टी-सीधी बात नहीं सुनना चाहता था, इसलिए उसने सीमा को रोका और कहा, “ज़्यादा न बोलो। तुम्हारी साँस चढ़ जाएगी।”
सीमा ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और कहा, “मुझे तुम पर ख़ुद से ज़्यादा भरोसा है। इसलिए मुझे इस बात की ज़्यादा चिंता है कि तुम मेरे बाद अकेले कैसे रहोगे?”
अजीत ने उसे बात करने से रोकने की कोशिश की, लेकिन सीमा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “तुम्हारी अभी कोई ख़ास उम्र नहीं हुई। राबिया अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मैथ्यू से शादी कर लेगी। तुम अकेले अपना जीवन कैसे जीओगे? मेरी बात मानो, मेरे बाद अपने लिए कोई . . .” अपनी बात पूरी करने से पहले ही उसका गला रुँध गया। उससे बोला नहीं जा रहा था और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
अजीत ने सीमा को अपनी बाँहों में भर लिया। वह भी रो रहा था। वे पाँच-चार मिनट तक एक-दूसरे से लिपटे रहे। आख़िरकार अजीत ने सहज होते हुए सीमा से कहा, “सीमा, तुम मुझे ऐसी बेकार बातों से दुखी क्यों करती हो? मैं पहले से ही बहुत परेशान हूँ, तुम मुझे और अधिक परेशान मत करो।”
“अजीत, तुम सच्चाई से भाग रहे हो। मैं भविष्य के बारे में सोच रही हूँ। यह ठीक है कि मैं अपनी बीमारी से परेशान हूँ, लेकिन मैं जो कह रही हूँ, उसे धैर्य से सोचो। तुम्हें अपने बारे में कुछ न कुछ सोचना होगा। मैं तुम्हारे बारे में चिंता करते हुए मरना नहीं चाहती। राबिया की मुझे कोई चिंता नहीं है। वह अमेरिका के माहौल में पली बढ़ी है। ऐसा नहीं है कि उसे मेरे जाने का दुख नहीं होगा, लेकिन वह जल्द ही अपने नए जीवन को अपना लेगी। मुझे सिर्फ़ तुम्हारी चिंता है कि तुम्हारा ख़्याल कौन रखेगा।” इतना कहते-कहते सीमा का गला सूख गया। उसे खाँसी छिड़ आई। अजीत ने उसे पानी पिलाया। पानी पीने से वह कुछ ठीक हो गई। उसने अजीत की ओर देखा। वह झुक कर बैठा था। सीमा ने उसे धीरे से हिलाया और कहा, “अजीत!”
जब अजीत ने सिर ऊपर उठाया तो वह सिसक रहा था। सीमा ने अपनी कमज़ोर भुजाओं से उसे अपने सीने से लगा लिया। “अजीत, जीवन में कई बार मुझे ऐसा लगा है, जैसे मैं तुम्हारी पत्नी भी हूँ और तुम्हारी माँ भी। कभी-कभी तुम्हारी हरकतें बिल्कुल बच्चों जैसी होती हैं। देखो, न तो स्त्री-पुरुष इस दुनिया में एक साथ आते हैं और न ही एक साथ जाते हैं। दोनों में से किसी एक को तो पहले जाना ही होता है। अब यह भगवान की इच्छा है कि मैं तुम्हें बीच में ही छोड़कर जा रही हूँ। अगर मुझे आज से दस साल बाद जाना होता, तो मैं यह बात कभी नहीं कहती।”
“सीमा, मेरी बात का जवाब दो . . .” अजीत ने ख़ुद को सँभालते हुए सीमा की आँखों में आँखें डालकर कहा।
सीमा कुछ नहीं बोली।
“अगर तुम्हारी जगह मैं इस स्थिति में होता तो क्या तुम ऐसा कर पाती?” यह कहते-कहते अजीत का गला रुँध गया।
“मुझे पहले से ही पता था कि तुम मुझसे यह ज़रूर पूछोगे। देखो, स्त्री और पुरुष में बहुत बड़ा अंतर होता है। यहाँ तक कि पत्नी को भी पति के बिना रहना मुश्किल है। मानसिक साथ के साथ-साथ शारीरिक साथ भी दोनों को चाहिए। लेकिन महिलाएँ अपना दुख दूसरों से बाँट लेती हैं, दिल के ग़ुबार को आँखों से बहाकर अपना दिल हल्का कर लेती हैं, जबकि पुरुष अपना दुख अपने तक ही सीमित रखते हैं, जिससे वे अंदर से टूट जाते हैं . . .।”
अभी सीमा की बात जारी थी कि राबिया का फोन फिर से आ गया।
उनकी बात बीच में ही रह गई। अजीत राबिया से बातें करने लगा और सीमा ने अजीत की ओर देखकर एक लंबी आह भरी। उसे दुख था कि उनकी बातचीत बीच में ही रह गई। उसके बाद सीमा को यह बात करने का दुबारा मौक़ा ही न मिला। वह मन ही मन सोचती रही कि उसके बाद अजीत का क्या बनेगा और यह बात अपने दिल में लेकर ही वह अजीत की दुनिया से हमेशा के लिए रुख़्सत हो गई।
अब अजीत के लिए समय बिताना मुश्किल हो गया था। हालाँकि जब पहली बार डॉ. राघव ने उसे सीमा की बीमारी के बारे में बताया था, तो वे चिंतित ज़रूर हुआ था, लेकिन उसे नहीं पता था कि यह समय इतनी जल्दी आ जाएगा। उसे बार-बार सीमा की बात याद आ रही थी कि उसके बिना उसे समय काटना मुश्किल हो जाएगा।
राबिया कुछ दिनों के लिए अपने डैड के पास रहकर चली गई थी। दरअसल उसे अपनी कुछ असाइनमेंट्स जल्दी सबमिट करवानी थीं और उनके लिए लाइब्रेरी से कुछ किताबों की बहुत आवश्यकता थी।
अजीत कई दिन अपने दफ़्तर न गया। उसके पुराने कर्मचारी ही काम चला रहे थे।
सीमा के जाने के क़रीब तीन महीने बाद ही अजीत की ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आया। एक बार उसे अपनी नई क्लाइंट के घर जाना पड़ा। पैर में चोट लगने के कारण क्लाइंट ज़्यादा चल-फिर नहीं सकती थी। अजीत के किसी क़रीबी ने उस महिला को अजीत के बारे में बताया था। अजीत तीन-चार बार उससे मिलने उसके घर गया।
पचास वर्षीय हिलेरी अपने पिता से मिले बड़े कारोबार को अकेले ही सँभाल रही थीं। लेकिन उसके पहले सीपीए ने उसके मैनेजर के साथ मिलकर उसे बहुत नुक़्सान पहुँचाया था। आगे की धोखाधड़ी से बचने के लिए वह एक अच्छी फ़र्म से संपर्क करना चाहती थी।
अजीत ने उसके सारे काग़ज़ात चेक किए और कई बातें पूछीं। सारे काग़ज़ात अपने बैग में रखने के बाद उसने हिलेरी से कहा कि उसे सब कुछ चेक करने और नया अकाउंट बनाने में दो-चार दिन लगेंगे। उसके बाद ही वह कुछ बता पाएगा।
तीन दिन बाद, अजीत ने हिलेरी को फोन किया और शाम को उसके घर पहुँच गया। उसने हिलेरी को बताया कि वह शुक्र करे कि पिछले दो वर्षों में जितना उनका नुक़्सान हुआ है, उसकी भरपाई पिछले दो सालों के रिफ़ंड से पूरी हो जाएगी। यह सुनकर हिलेरी ख़ुश हो गई। अजीत ने बहुत से काग़ज़ात पर उसके हस्ताक्षर करवाए और कहा कि उसे एक महीने के भीतर रिफ़ंड मिल जाएगा।
अजीत के आने से पहले ही हिलेरी ने काॅफ़ी का प्रबंध कर रखा था। काॅफ़ी पीते हुए दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे। अजीत को भी घर जाने की जल्दी नहीं थी। उसे पता था कि घर जाकर उसे अकेले समय बिताना मुश्किल हो जाता है। क़रीब एक घंटे बाद अजीत जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। हिलेरी ने कहा कि अगर वह जल्दी में नहीं है तो उसे रात का खाना खाकर जाना चाहिए। अजीत हिलेरी को मना नहीं कर सका।
हिलेरी ने अजीत से उसकी पसंद पूछकर खाना ऑर्डर किया और अपनी छड़ी के सहारे वाइन की बोतल लाने के लिए उठने लगी। अजीत ने उसकी हालत देखकर कहा कि वह बैठी रहे, वह ख़ुद फ़्रिज से बोतल ले आएगा।
अजीत वाइन की बोतल और दो गिलास ले आया और दोनों बातें करने लगे। बातों-बातों में, अजीत ने कहा कि उसकी पत्नी की तीन महीने पहले कैंसर से मृत्यु हो चुकी है और उसकी एकमात्र बेटी न्यूयॉर्क में लाॅ कर रही है। हिलेरी ने उसे बताया कि वह अभी अविवाहित है क्योंकि उसके दोस्तों ने उसे दो बार धोखा दिया है। वास्तव में वह दोस्त थे ही नहीं। दोस्त होने का दिखावा करके उसकी सम्पत्ति हड़पना चाहते थे। इसके पश्चात उसने शादी का ख़्याल ही छोड़ दिया। हिलेरी ने अजीत से पूछा कि क्या उसने अपनी पत्नी की मौत के बाद दोबारा शादी के बारे में कुछ नहीं सोचा? अजीत का जवाब सुनकर हिलेरी हैरान रह गई, “सीमा मेरा पहला और आख़िरी प्यार थी।” अजीत ने यह भी बताया कि सीमा ने उससे कहा भी था कि उसके जाने के बाद उसे अपने लिए नया जीवनसाथी ढूँढ़ लेना चाहिए। यह सुनकर हिलेरी ने कहा कि सीमा ने उसे बिल्कुल सही सलाह दी थी।
अजीत ने कुछ ही समय में हिलेरी के बिज़नेस अकाउंट ठीक कर दिए। हिलेरी अजीत की ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुई। इस काम के लिए अजीत ने फ़ीस भी कोई ज़्यादा नहीं ली। काम के सिलसिले में और कभी-कभी साथ समय बिताने के लिए दोनों अक्सर मिलने लगे और दोनों एक-दो बार हमबिस्तर भी हुए। एक दिन हिलेरी ने ख़ुद ही अजीत से पूछा कि क्या वे दोनों जीवन-साथी बन सकते हैं? अजीत का जवाब सुनकर उसे धक्का सा लगा और उसने एक गहरा निःश्वास छोड़ा। अजीत ने कहा कि इस उम्र में वह दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता, क्योंकि उसने अभी अपनी बेटी की शादी करनी है। राबिया अपने डैड के बारे में क्या सोचेगी? वे अच्छे दोस्त की तरह रह सकते हैं और वह कोशिश करेगा कि आगे से एक सीमा में रहें।
इसके बाद उसने हिलेरी से मिलना-जुलना कम कर दिया।
इसी बीच राबिया कुछ दिनों के लिए अपने डैड के पास आई। उसके आने के अगले दिन ही हिलेरी ने अजीत को फोन किया कि अगर वह शाम को फ़्री है तो एडवांस टैक्स चुकाने के काग़ज़ात तैयार करने के लिए आ जाए और डिनर भी उसके साथ कर ले। अजीत ने बताया कि उसकी बेटी आई हुई है, इसलिए वह नहीं आ सकता। यह सुनकर हिलेरी ने कहा कि फिर तो उसे राबिया को भी साथ लाना चाहिए। वह राबिया से भी मिल लेगी। अजीत सहमत हो गया। फोन रखने के बाद उसने राबिया को बताया कि वह शाम को तैयार हो जाए, उसके एक क्लाइंट ने उन्हें डिनर के लिए आमंत्रित किया है और कुछ काम भी करना है।
शाम को जाते समय अजीत ने राबिया को हिलेरी के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी दे दी। हिलेरी राबिया से मिलकर बहुत ख़ुश हुई। अजीत ऐडवांस टैक्स के ऑनलाइन काग़ज़ात भरता रहा और राबिया और हिलेरी दोनों एक दूसरे से बातें करने में व्यस्त हो गईं। राबिया ने उसे बताया कि वह अपने पिता को लेकर काफ़ी चिंतित हैं। माँ के बाद वह अकेले हो गए हैं। उन्हें माँ की बहुत याद आती है। उसकी समस्या यह है कि वह अपने पिता के साथ भी नहीं रह सकती और न ही वे अपना काम छोड़कर उसके पास आ सकते हैं। उसने हिलेरी से कहा कि वह भी डैड का ख़्याल रखें। वह हिलेरी को भी फोन करती रहेगी। राबिया को हिलेरी का स्वभाव बहुत अच्छा लगा।
अचानक उसके मोबाइल फोन की आवाज़ से उसकी सोच टूटी, उसने देखा कि इस बार राबिया का फोन था। उसने मोबाइल उठाया और बोला “हैलो।”
“डैड, आप कहाँ हैं? क्या आप ठीक हैं?”
“हाँ बेटा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आख़िर क्या बात है, तुम घबराई हुई सी क्यों हो? मैं घर में ही हूँ।”
“आप हिलेरी आंटी का फ़ोन क्यों नहीं अटेंड कर रहे?”
“क्या?”
“आप हिलेरी आंटी से बात क्यों नहीं करते?”
अजीत ने कोई जवाब नहीं दिया।
“हाँ डैड, हिलेरी! उन्होंने मुझे फोन किया है कि वह बहुत देर से आपको फोन कर रही हैं। पर आप उनका फोन पिक नहीं कर रहे। डैड, ट्राई टु अंडरस्टैंड! हिलेरी टोल्ड मी एवरीथिंग!”
“ओ नो!”
“डैड, प्लीज़ लिसन! आई नो वेरी वेल दैट युअर लव ऐंड अफ़ेकशन टुवर्ड्स माॅम वाज़ बियोंड ऐनी कम्पेरेज़न! आई एप्रीशिएट दैट ऐंड फ़ॉर दैट आई एम प्राऊड ऑफ़ यू! बट नाऊ ट्राई टु चेंज अकार्डिंग टु द सर्कमसटांसिज़! आई ऐम आलवेज वरीड अबाऊट यू! बट कांट डू एनीथिंग . . .!”
अजीत ने राबिया की बात काटते हुए कहा, “राबिया, मेरी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।”
“डैड, मेरी मजबूरी है कि आप मेरे साथ नहीं रह सकते। पहले मैं सोच रही थी कि मैं कुछ दिनों के लिए आपके पास आऊँगी, लेकिन आज ही मैथ्यू ने मुझे सरप्राइज़ दिया कि हम दो दिन बाद स्विट्ज़रलैंड जा रहे हैं। मेरा रिज़ल्ट आ गया है। एक लाॅ फ़र्म में मेरी सिलेक्शन भी हो गई है। स्विट्ज़रलैंड से आकर मेरी ओथ सेरेमनी है। फ़ॉर सेलीब्रेटिंग दिस बिग इवेंट ऑफ़ माई लाइफ़, ही इज़ टेकिंग मी टु स्विट्ज़रलैंड!”
“दैन गो अहेड विद युअर प्रोग्रैम! आई एम प्राऊड ऑफ़ यू! यदि आज तुम्हारे मम्मा होती तो उन्होंने कितना ख़ुश होना था,” यह कहते हुए अजीत की आँखें डबडबा आईं।
“आई नो डैड! पर सुनो! मैंने मैथ्यू से भी आपके और हिलेरी आंटी के बारे में डिस्कस किया है, ऐंड ही इज़ वेरी हैपी इफ़ यू बोथ डिसाइड टु स्टार्ट ए न्यू लाइफ़! डैड प्लीज़, गो अहेड! यदि आप हिलेरी आंटी के साथ नई ज़िन्दगी शुरू करोगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। लोगों के बारे में मत सोचो कि वो क्या कहेंगे। ट्राई टु लिव इन द प्रेजेंट। अगर आप और हिलेरी आंटी मेरी ओथ-सेरेमनी में एकसाथ शामिल होंगे तो यह और भी मज़ेदार होगा।”
“पर राबिया . . . “
“डैड नो। नो इफ, बट। मेरे पास अभी समय नहीं है। मुझे स्विट्ज़रलैंड के लिए पैकिंग करनी है। आप अभी हिलेरी आंटी को फोन करो और हाँ, यदि उनका फोन आए तो उनसे बात करो। बाय, एंड टेक केयर! बी हैपी विद युअर न्यू फ़्रेंड!” इतना कहकर राबिया ने फोन काट दिया।
अजीत को समझ नहीं आया कि वह क्या करे? उसने एक बार सीमा की फोटो को अपने हाथ में लिया। उसी समय उसका फोन बज उठा। हिलेरी का फोन था। उसने एक गहरा निःश्वास छोड़ा, सीमा की फोटो की ओर देखा और दूसरा हाथ मोबाइल की ओर बढ़ाया।