गांधीवाद से प्रभावित आधुनिक हिन्दी साहित्य
डॉ. छोटे लाल गुप्ताआधुनिक हिन्दी साहित्य पर गांधी का प्रभाव पूरी परिशुद्धता के साथ व्याप्त है। महात्मा गांधी ने भारत भूमि की स्वाधीनता के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे जनमानस में सत्य, अहिंसा, प्रेम, एकता, शांति, सद्भाव, सर्वधर्म सम्भाव, समानता एवं मानवता की भावना जागृत करने के लिए सतत् संघर्षशील रहे। गांधीजी के आदर्शों का प्रभाव जहाँ हिन्दी के कथा साहित्य पर संपूर्णता में व्याप्त हुआ है, वहीं कविता साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा।
भारतीय सनातन संस्कृति सत्य, अहिंसा एवं समन्यवादी संस्कृति है, इसलिए रामायण एवं श्रीरामचरितमानस के रचनाकारों ने श्रीराम के चरित्र को आदर्श मानकर उनके चरित्र का निर्माण किया एवं एक आदर्श राज्य की कल्पना की। गांधीजी भी श्रीराम के चरित्र से प्रभावित थे एवं राम राज्य की कल्पना को साकार करना उनका परम उद्देश्य था। इसलिए, जब राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व का मौक़ा उन्हें मिला तो गांधीजी ने उस आंदोलन को शांति से लड़ने का आग्रह अपने राष्ट्रवादी देशभक्तों से किया एवं हिंसा का मार्ग छोड़कर अहिंसा के मार्ग पर चलने की हिदायत दी। यही कारण था कि उस समय के तथा उनके बाद के हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता पर भी उनके व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही हो गया था। जहाँ प्रेमचंद एवं जैनेंद्र जैसे कथाकारों ने अपनी कथाओं में आदर्श चरित्रों का निर्माण किया वहीं कविताओं में मैथिलीशरण गुप्त जैसे राष्ट्रवादी कवियों ने भी एक व्यापक आदर्श प्रस्तुत की।
हम हिन्दी साहित्य पर महात्मा गांधी के प्रभाव को स्पष्ट एवं व्यापक रूप में देख सकते हैं। उनके चिंतन-दर्शन, राष्ट्र नवनिर्माण एवं स्वराज की कल्पना को हिन्दी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का विषय बनाया। साहित्य समाज का दर्पण होता है और समाज में हो रही घटनाओं का समकालीन एवं उसके बाद के साहित्य पर प्रभाव पड़ना अनिवार्य हो जाता है। गांधीजी जो अपने-आप में एक शांति के आंदोलनकर्ता थे एवं तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन की घटनाओं के शांति के प्रणेता थे। अतः उनके द्वारा किए गए कार्यों को हिन्दी साहित्यकारों ने साहित्य में स्थान दिया एवं उनके मूल्यों एवं आदर्शों को साहित्य की प्रत्येक धारा में अभिव्यक्त किया। अतः गांधीजी के मूल्यों एवं आदर्शों का हिन्दी साहित्य में तत्वधारिता रूप में अपनाना समीचीन प्रतीत होता है।
सत्य महात्मा गांधी के जीवन दर्शन का ध्रुवतारा है। निरपेक्ष सत्य को उन्होंने ईश्वर के साथ समीकृत किया है। इनके अनुसार सत्य ही ईश्वर का दूसरा नाम है। पूर्ण सत्य में सभी प्रकार के ज्ञान (चित्त) भी समाहित हैं और वह ज्ञान शाश्वत आनंद का स्रोत है। इसलिए हम ईश्वर को सच्चिदानंद के नाम से पहचानते हैं। महात्मा गांधी के इन विचारों का प्रभाव हम जैनेंद्र की ‘वे तीन’ शीर्षक कहानी में पाते हैं। गांधीजी के विचारों के प्रभाव को उनकी कहानियाँ ‘फांसी’, ‘वातायन’, ‘एक रात’, ‘पाजेब’ आदि में देखा जा सकता है और साथ ही उपन्यास ‘सुनीता’ में भी देखा जा सकता है। महात्मा गांधी का मत था कि शुद्ध सत्य की ओर अग्रसर होने के लिए मनुष्य को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को समझना चाहिए जिससे हमारा जीवन शुद्ध हो और हम पूर्ण शाश्वत सत्य को समझें। सत्य का चित्रण विष्णु प्रभाकर ने अपने कहानी संग्रह ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’ में किया है। इनकी ‘वापसी’ कहानी में रामसिंह विद्वेष की आग में जलते हुए सोचता है कि "मैं उसके परिवार को दर-दर का भीख मँगवाऊँगा, भिखारी बनाऊँगा।" लेकिन जब उसे सत्य का बोध होता है और आत्म ज्ञान की चक्षु दृष्टि खुलती है तो वह घर में लगी आग से अपनी जान की बाज़ी लगाकर सौतेल भाइयों को बाहर निकालता है। यह हृदय परिवर्तन अचानक नहीं, बल्कि गांधीवादी दृष्टिकोण का ही प्रभाव है।
वासुदेव आठले की कहानी ‘मानवता की भेंट’ में गांधीवादी दार्शनिक चरित्र देखने को मिलता है। स्वरूप कुमार बख्शी की ‘कौड़ियों का नाच’ शीर्षक कहानी में महात्मा गांधी के सत्य तत्व की प्रतिष्ठा का प्रयास किया गया है। कहानी का पात्र नंदकुमार संपन्न परिवार का लड़का है। 1947 के सांप्रदायिक दंगे में उसका सबकुछ नष्ट हो जाता है और वह संपन्न बनने के लिए असत्य मार्ग को अपनाता है, तभी उसकी माँ उसे असत्य मार्ग छोड़ने एवं सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है और वह सत्य के मार्ग पर चलने का प्रण लेता है। महात्मा गांधी ने सत्य को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताया और अहिंसा को परम कर्तव्य। उनका कहना था कि सत्य की तरह अहिंसा भी सर्वशक्तिमान और असीम है, ईश्वर के समानार्थक है। अहिंसा के बारे में उनका विचार है- अहिंसा का अर्थ है पृथ्वी के किसी जीवधारी को विचार शब्द और किसी कार्य में दुःख देने से बचाना। गांधी के इन विचारों का सम्यक निर्वाह विनोदशंकर व्यास की ‘स्वराज कब मिलेगा?’ शीर्षक कहानी में असहयोग आंदोलन वर्णन के प्रसंग में होता है। अहिंसा की अनिवार्यता आनंदप्रकाश जैन की ‘देवताओं की चिंता’ कहानी में दृष्टिगोचर होती है।
चैतन्यभट्ट ने अपनी ‘रंग में भंग’ कहानी में महात्मा बुद्ध के मुख से अहिंसा की महत्ता का प्रतिपादन कराया है- "साधारण नियम तो यह होना चाहिए कि पशु हिंसा त्याज है ही, यज्ञानुष्ठान में तो यह कदपि नहीं होना चाहिए।" श्री पारसनाथ सरस्वती ने अपनी कहानी ‘अहिंसा विजय’ में कहा है कि शत्रुता को कभी लड़ाई और हिंसा के द्वारा नहीं जीता जा सकता। इसका शमन मात्र प्रेम आचरण द्वारा ही संभव है।
धर्म के विषय में गाँधीजी का कहना था कि धर्म जीवन का परम ध्येय है, आत्मदर्शन है, सभी धर्मों का सामंजस्य है, सबकी भलाई के लिए प्रयत्नशील है एवं देशप्रेम को ही अपना कर्तव्य मानता है। गांधी के इन विचारों का प्रतिबिम्ब विष्णु प्रभाकर की कहानी ‘उस दिन’ की पात्रा मंजू के माध्यम से देख सकते है। मंजू सांप्रदायिकता एवं तनावपूर्ण बर्बर वातावरण में एक मुस्लिम बालक को अपने घर में शरण देकर मानवीय धर्म का पालन करती है। गांधीजी के मानवीय धर्म का उत्कृष्ट उदाहरण हमें राधेलाल विजधावने ‘अतृत’ की कहानी ‘एक सूत्र’ में प्राप्त होती है। फरीदा का विवाह हिन्दू-मुसलमान के झगड़ों का कारण बन जाता है। तब उसका मामा कहता है- क्या कोई भी धर्म संप्रदाय इंसानियत का गला घोटने की अनुमति देता है? तो फिर आप हिन्दू-मूसलमान के चक्कर में मानव धर्म को क्यों भूल जाते हैं? आप एक-दूसरे से गले मिलकर मानव धर्म को क्यों नहीं अपनाते?
गांधीजी ने अपने पत्र ‘हरिजन’ में ईश्वर को जीवन की शक्ति माना है और वही शक्ति हमारा जीवन है। जो व्यक्ति उस महान शक्ति के अस्तित्व को इंकार करता है, वह उस अनंत शक्ति के उपयोग से इंकार करता है और इस प्रकार शक्तिहीन रहता है। स्वरूप कुमार बख्शी के ‘निर्झर कन्या’ कहानी संग्रह की दो कहानियाँ ‘बुलबुल’ और ‘जीवन की सात समस्याएँ’ के किंचित अंश महात्मा गांधी की उक्त धारणा की पुष्टि करते हैं। ‘जीवन की सात समस्याएँ’ कहानी में पर्णकुटी निवासिनी आध्यात्मिक शक्ति संपन्न महिला के पास एक व्यक्ति जीवन की सात समस्याओं के समाधान के लिए जाता है और महिला के प्रबोधन से युवक अंततः समझ जाता है कि वास्तविक रोग कैंसर नहीं, मन की तृष्णा ही कैंसर है और उसकी औषधि प्रभु की कृपा है।
गांधी ने सत्य की खोज के लिए सेवा को आवश्यकता माना है। गांधीजी की इस विचारधारा को आधुनिक साहित्यकारों ने शिरोधार्य किया है। इनमें बलदेव उपाध्याय की ‘पतिव्रता का व्रत’, स्वरूप कुमार बख्शी की ‘बुलबुल’, ‘कुरूप कन्या’, ‘प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता’ एवं सोमवीरा की ‘धरती बेटी’ शीर्षक कहानी का उल्लेख मिलता है। ‘बुलबुल’ कहानी में बुलबुल नर्स बनकर रोगियों एवं घायल पशु-पक्षियों की सेवा करती है।
महात्मा गांधी युद्ध का परित्याग कर शांति प्रसार पर अधिक बल देते थे। गांधीजी की शांति रूपी विचारधारा का प्रभाव अमृतलाल नागर की ‘एटमबम’ कहानी और आनंदप्रकाश जैन की ‘मूछ का बाल’ कहानी में देखने को मिलता है। इनके अपरिग्रह का प्रभाव हमें वर्तमानयुग के प्रमुख कहानीकार दामोदर सदन की कहानी ‘मेजर श्रीनाथ का वसीयत’ एवं नवनीत मिश्र की ‘छाया मत छूना’ कहानी में मिलता है।
भारत के समाज-सुधारकों में एक प्रमुख नाम महात्मा गांधी का भी है। समाज सुधार की दिशा में किए गए सुधार नदी उद्धार, सांप्रदायिक एकता, हरिजनोद्धार, मद्यपान निषेध संबंधी विचार प्रशंसनीय हैं। सांप्रदायिकता को देश का अत्यधिक प्रभाव प्रेमचंद और उसके साहित्य पर परिलक्षित होता है। प्रेमचंद ने स्वराज्य, समतावाद और धर्म को संयुक्त करके अपने साहित्य में सामाजवाद का रूप सत्यं, शिवं, सुंदर में निहित किया है। गांधीजी के स्वराज्य का स्पष्ट प्रभाव प्रेमचंद में दिखाई देता है। इन्होंने अपने प्रसिद्ध और अंतिम लेख ‘महाजनी सभ्यता’ में कहा है- "धन्य है वह समता जो मालदारी और व्यक्तिगत संपत्ति का अंत कर रही है ......पर जो सत्य है एक दिन उसी की विजय होगी।" ‘गबन’ में एक नेता पर तीखा व्यंग्य करते हैं- ‘तुम सुराज का नाम लेते हो उसका कौन रूप तुम्हारे सामने आता है .....जब तुम्हारा राज हो जाएगा तब तुम गरीबों का खून पी जाओगे।’ विष्णु प्रभाकर की ‘सुराज’ शीर्षक कहानी में स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद का संघर्ष, ‘धरोहर’ में बंगाल के अकाल, ‘आजादी’ में गांधीजी का स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु किया गया संघर्ष, ‘मेरा वतन’ में राष्ट्रीय प्रेम और ‘भारत माता की जय’ में सांप्रदायिक दंगे के वर्णन में प्रभाव दृष्टिगत होता है।
गांधीजी ने अस्पृश्यता निवारण का व्रत लिया था। उनका मानना था कि हम सभी एक ही अग्नि की चिंगारियाँ हैं, उसी ईश्वर के जीव हैं। वह हरिजनोद्धार कर अस्पृश्यता का अंत करना चाहते थे। इनके हरिजनोद्धार का प्रभाव लक्ष्मीनारायण की ‘आनेवाला कल’ शीर्षक कहानी में मिलता है। सोमा वीरा ने अपनी कहानी ‘अंगूठी’ में "जलपान कर लेते तो तुम्हारी जाति चली जाती पर मेरे देह का स्पर्श करने से तुम जाति च्युत न हुए।" प्रेमचंद ने गोदान में दलितों का वर्णन दमितपात्र के रूप में नहीं किया है- सिलिया का बाप ठाकुर झिंगुरी सिंह से कहता है कि "झगड़ा कुछ नहीं है ठाकुर, आज हम मातादीन को चमार बनाकर छोड़ेंगे या उनका और अपना रकत एक कर देंगे।"
गांधीजी दहेज प्रथा तथा नारी उद्धार के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने वेश्या वृत्ति समस्या, विधवा विवाह, दहेज समस्या और नारी शिक्षा की दिशा में काफी प्रयास किए जिनका प्रभाव आधुनिक साहित्यकारों पर भी पड़ा है। विधवा विवाह के समर्थन की दृष्टि से सोमा वीरा की ‘रेत के टीले’ और ‘बिंदिया’ कहानी का नाम उल्लेखनीय है। सोमा वीरा ने ‘रेत के टीले’ में गांधीजी की शब्दावली में कहा- "मंगलमय भगवान की भी यही मनोवृत्ति है। फूल झड़ जाता है, उसकी जगह नई कली खिला देते हैं। ममतापूर्वक बनाई गई जीवन की गाड़ी के पहिए के अकस्मात टूट जाने पर दूसरे पहिए को निरुद्देश्य भाव से घसीटते देख उनकी आंखों में आँसू भर जाते हैं।"
स्त्री जाति की प्रगति और स्वतंत्रता की राह में गांधीजी दहेज का एक बहुत बड़ा रोड़ा मानते हैं। सोमा वीरा ने गांधीजी के स्वर में स्वर मिलाकर ‘अधूरी गांठ’ और ‘राख की पुड़िया’ में दहेज की कुप्रथा की तीव्र भर्त्सना की है। रामेश्वरी चकोरी ने अपनी ‘आँखों का कौतुक’ शीर्षक कहानी में भारतीय नारी के लिए दहेज की विवशता का वर्णन किया है। प्रेमचंद के ‘निर्मला’ उपन्यास में भी दहेज पीड़ित महिला का जीवन दर्शाया गया है। ‘सेवासदन’ में सामाजिक घृणित वेश्यावृत्ति की समस्या को उजागर किया गया है। इलाचंद्र जोशी, उपेंद्रनाथ अश्क, विनोद शंकर व्यास और विष्णु प्रभाकर ने भी अपनी कहानियों में वेश्या समस्या से संबंधित चित्र खींचे है। गांधीजी ने नारी उद्धार के विषय में कहा है- "जब तक हम अपने यहाँ की स्त्रियों को माँ, बहन, बेटी समझकर उनका आदर करना नहीं सीखेंगे तब तक भारत का उद्धार नहीं होगा।" गांधीजी का सामाजिक प्रभाव अमृतराय और फणीश्वर नाथ रेणु ऊपर भी दृष्टिगोचर होता है। रेणुजी का ‘नित्य लीला’ और ‘तबे एकला चलो रे’ में नारी के प्रति समाज का हीनबोध उद्घाटित होता है। अमृतराय ने नारी की इस करुणाजनक स्थिति का मूल कारण सामंतवाद और पूंजीवाद को माना है। इस संदर्भ में उनकी रचना ‘सती का शाप’, ‘अंधकार के खंभे’, ‘समय’ और ‘सांवली लड़की’ द्रष्टव्य है।
राजनीतिक क्षेत्र में महात्मा गांधी के स्वदेश और राष्ट्र विषयक विचार महत्त्वपूर्ण हैं। वे इस देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाले महान नायक थे। इनके राजनीतिक प्रभाव विनोदशंकर व्यास के ‘स्वराज कब मिलेगा’ कृति में परिलक्षित होता है व्यासजी ने अपनी कहानियों में रेणु राष्ट्र प्रेम के अंतर्गत असहयोग आंदोलन, धरना-जुलूस आदि का वर्णन किया है। राष्ट्रीय भावना के संदर्भ में विष्णु प्रभाकर की ‘खंडित पूजा’ और ‘नागफांस’ कहानी भी उल्लेखनीय है।
गांधीजी बहुजन हिताय एवं ग्राम स्वराज्य के पक्षपाती थे जिनका प्रभाव हम प्रेमचंद और उनके परवर्ती साहित्यकारों पर भी देखते हैं। गांधीजी के समान ही प्रेमचंद का व्यक्तित्त्व सरल एवं सादगी से भरा हुआ था और वे भी बहुजन हिताय के प्रबल समर्थक थे। उनका साहित्य ग्रामीण जीवन एवं शोषित जनता पर अत्यधिक लिखा गया है। ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्प’ आदि के कृषक जीवन की मार्मिक झाँकी प्रस्तुत की है एवं एक आदर्श कृषक समाज की अवधारणा को निरूपित किया है। इसके साथ ही फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ में भी ग्रामीण स्वराज की बात हुई है।
गांधीजी के आदर्शों का प्रभाव जहाँ हिन्दी के कथा साहित्य पर संपूर्णता में व्याप्त हुआ है, वहीं कविता साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा है। मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी काव्य-रचना ‘भारत-भारती’ में गांधी के आदर्शों को स्थापित करते हुए कहा है-
श्री गोखले, गांधी-सदृश नेता महामतिमान है,
वक्ता विजय घोषक हमारे श्री सरेन्द्र समान हैं।
यही नहीं उनके संपूर्ण काव्य में गांधीजी के प्रभावों को परिलक्षित किया जा सकता है। आधुनिक भारतीय इतिहास की सबसे त्रासद घटना है महात्मा गांधी की हत्या। इस घटना से कवियों पर बहुत गहरा अघात पहुँचा और उन्होंने गांधीजी की मृत्यु पर मार्मिक हृदयस्पर्शी कविता की रचना कर डाली। राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘निःशस्त्र सेनानी’ शीर्षक कविता में महात्मा गांधी के अंतरंग व्यक्तित्व का वर्णन किया है-
"देश? -यह प्रियतम भारत देश,
सदा पशुबल से जो बेहाल,
वेष? -यदि वृंदावन में रहे
कहा जाये प्यारा गोपाल।"
इस कविता में माखनलालजी ने अपने आराध्य देव कृष्ण के रूप में गांधी की कल्पना की है। रामनरेश त्रिपाठी का प्रसिद्ध खंड काव्य ‘पथिक’ में गांधीजी को राष्ट्रनायक के रूप में उद्धृत किया गया है-
"अति अशांत दुखपूर्ण विशृंखल क्रांति-उपासक जग में।
रखना अपनी आत्मशक्ति पर दृढ़ निश्चल प्रतिपग में।....
दुखदायी शासन से अपनी सारी शक्ति हटा लो।
निज सुख-दुख का अपने ऊपर सारा भाल संभालो।"
सुभद्रा कुमारी चैहान की कविता में भी गांधीजी के असहयोग आंदोलन एवं धर्मनिरपेक्ष समाज के निर्माण की कल्पना का प्रभाव सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति एवं सांप्रदायिक सद्भाव की झाँकी परिलक्षित होती है-
मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी,
पूजा पाठ, ध्यान जप-तप है घट-घट वासी यह मेरी।
कृष्णचंद्र की क्रीड़ाओं का अपने आंगन में देखो।
कौशल्या के मातृ मोद को अपने ही मन में देखो।
प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास
जीव दया जिन पर गौतम की आओ देखो इसके पास।
गांधीजी के प्रभाव से भवानी प्रसाद मिश्र इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ‘गांधी पंचशती’ नामक वृहद काव्य ग्रंथ की रचना ही कर डाली। बालकृष्ण शर्मा नवीन ने ‘तुम युग परिवर्तन कालेश्वर’ नामक शीर्षक से महात्मा गांधी पर कविता लिखी जिसकी कुछ पंक्ति हैं-
रंग प्रभावित किया नहीं जन के मन को
सात्विकता ने तुम और ईसा, सुकरात सभी,
कर गए प्राण उत्सर्ग
यहां, पर जन बौना ही रहा और, उतरा न भूमि पर स्वर्ग।
आधुनिक हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री महादेवी वर्मा ने गांधीजी को धारा का अमर पुत्र बताते हुए कहा है-
‘हे धरा के अमर पूत, तुमको अशेष प्रणाम।
जीवन के अजस्त्र प्रणाम, मानव के अनंत प्रणाम।’
सोहनलाल द्विवेदी ने इन्हें महात्मा और पुण्यात्मा बताते हुए लिखा है-
‘ठहरो, चिता लगाव मत, ओ निर्मम देश महात्मा की,
एक बार फिर चरण-धूलि, ले लेने दो पुण्यात्मा की।’
इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक हिन्दी साहित्य पर गांधीजी का प्रभाव पूरी परिशुद्धता के साथ व्याप्त है। महात्मा गांधी ने भारत भूमि की स्वाधीनता के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे जनमानस में सत्य, अहिंसा, प्रेम, एकता, शांति, सद्भाव, सर्वधर्म सम्भाव, समानता एवं मानवता की भावना जागृत करने के लिए सतत् संघर्षशील रहे। उनका विचार था कि ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी और छुआछूत, अन्याय, उत्पीड़न तथा किसी प्रकार की हिंसा न हो और समस्त भारतवासी निर्भय होकर शांतिमय जीवन व्यतीत कर सकें। अतः हिन्दी साहित्य पर उनके विचारों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। उनके विचारों को हिन्दी साहित्य के अधिकांश साहित्यकारों ने अपनाया और उनको अपनी रचना का विषय बनाया। कथा साहित्य में जहाँ प्रेमचंद, रेणु, जैनेंद्र, अश्क, स्वरूप कुमार बख्शी विष्णु प्रभाकर आदि की रचनाओं में गांधी विचार एवं उनके आदर्शों को देखते हैं, वही मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चैहान, माखनलाल चतुर्वेदी, भवानी प्रसाद मिश्र, बालकृष्ण शर्मा नवीम आदि कवियों में भी देखने को मिलता है।
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