एकांत मुझे प्रिय है
वेदिका संजय गुरव
हवाओं में अपने प्रिय से गुनगुनाना
वक़्त से लड़कर क्षण क्षण उनका मनन करना
स्वयं से बिछड़कर अपने भीतर उससे पाना
मन ही मन मुस्कुराना
कल्पना मात्र से लज जाना
उससे देखने से उसके देखने तक को
आँखों में छिपा लेना
अगर मुझे प्रेम ना दे सको
तो मुझे एकांत दे देना
एकांत मुझे प्रिय है