एकांत

रंजना जैन (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मैंने बना लिया एकांत को
जीने का ज़रिया प्यार से
ख़ुद अपनी सहेली बनठन के
रहना अपने में ठाठ से॥
 
यहाँ हरियाली है मौन की
झरने झरते रस धार के
बैठे बैठे कुछ सोच में
खो जाते ईश्वर ध्यान में॥
 
राहें तो रहतीं अनंत हैं
पर जीवन का तो अंत है
ठहराव मिले तो मंज़िल है
ख़्वाहिशें रुकें तो सुकून है॥
 
कुछ राग नहीं कुछ द्वेष नहीं
कोई धर्म कर्म विशेष नहीं
बस शांत चित्त पल पल में है
और जीवन में कुछ शेष नहीं॥

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