एक माँ का अपने बेटे के नाम ख़त

15-04-2024

एक माँ का अपने बेटे के नाम ख़त

शीला श्रीवास्तव (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

प्रिय बेटा, 

शुभाशीष

आशा करती हूँ कि अब तुम्हारा परिवार ख़ुशहाल ज़िंदगी जी रहा होगा। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम लोग के साथ है और रहेगा।

अगर कभी फ़ुर्सत निकालकर तुम लोग हमसे मिलने आ जाओ तो हमें बहुत ख़ुशी होगी।

रहना तो हम दोनों जन तुम लोगों के साथ ही चाहते थे, पर हमने ग़ौर किया कि हमारी मौजूदगी तुम लोगों की ख़ुशियों में ख़लल डाल रही थी, इसलिए मजबूरन हमें अपने पैतृक निवास लौटना पड़ा।

जैसे-जैसे जीवन की शाम ढल रही है, वैसे-वैसे बीमारियों ने हमें घेरना शुरू कर दिया है। दिनचर्या का काम भी हम बहुत मुश्किल से कर पाते हैं।

कहते हैं ना, बच्चे और बूढ़े दोनों एक समान होते हैं। दोनों को ही देखभाल की सख़्त ज़रूरत होती है। अपने बच्चों को तो हर माँ-बाप लाख कष्ट सहकर भी सँभाल लेते हैं पर विडंबना तो यह है कि बुज़ुर्गों को सँभालने में आज की पीढ़ी उतनी तत्पर दिखाई नहीं दे रही है, यही कारण है कि आज हमारे समाज में संयुक्त परिवार की प्रथा टूटती जा रही है।

बेटा, मुझे रात में कभी-कभी यह सोच कर नींद नहीं आती कि अगर हम दोनों में से किसी को भगवान के पास पहले जाना पड़े तो फिर दूसरे का क्या होगा? 

ख़ैर, इसके लिए तुम चिंता मत करना। सरकार ने ऐसे बेसहारों के लिए वृद्धाश्रम एवं विधवा आश्रम जैसे संस्थाएँ खोल रखी हैं ताकि अपने बच्चों की बेरुख़ी के शिकार बुज़ुर्गों को पनाह मिल सके, पर बेटा जो सुख अपनों के बीच में रहकर मिलता है, वो कहीं और तो नहीं मिल सकता न। 

कहते हैं भगवान से पहले माता-पिता का स्थान आता है। जिस परिवार में बड़े बुज़ुर्गों का आशीर्वाद हो वह परिवार हमेशा फूलता-फूलता है, पर आज की पीढ़ी इन सब बातों में कहाँ विश्वास करती है? उन्हें तो बस अपना सुख और अपनी महत्वाकांक्षाएँ ही दिखती हैं, इसके लिए वे नाते-रिश्तेदार को भी दरकिनार करने से नहीं हिचकते। वे यह तक नहीं सोचते कि आज वे जिस रास्ते पर चल रहे हैं, कल को अगर उनकी संतान भी वही रास्ता अख़्तियार करें तो फिर उनका क्या हर्ष होगा ? 

मैं तुम पर कोई भावनात्मक दवाब नहीं डाल रही हूँ और ना ही यह चाहती हूँ कि जिस दर्द से हम गुज़र रहे हैं , तुम लोग भी उसी दर्द से गुज़रो।

कोई भी माँ बाप अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते। मैंने तो बस दुनियादारी की बातें लिखी हैं, वो क्या है न, बच्चे अक़्सर अपने माँ-बाप के दिखाए गए रास्तों का अनुसरण करते हैं पर यह कोई ज़रूरी नहीं है।

तुम लोग ख़ुश रहो और फूलो-फलों, यही मेरी कामना है।

तुम्हारी माँ।

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