दोस्त?
नीलेश मालवीय ’नीलकंठ’दिन उदासी के मौसम में बीता अपना,
रात को सिसकियों ने सुलाया था,
पहले बात तो हुई थी गले लगाने की,
मिले वो तो हाथ भी ना मिलाया था,
कहा था आना वक़्त भी लाना,
देर तलक तक बात करेंगे,
मंदिर जंगल बस्ती गालियाँ,
कहीं दूर तक साथ चलेंगे,
मुख मेरे मिलने की चमक थी,
उसकी आँखों में उदासी छायी थी,
मेरे साल के सपनों की नैया,
उनकी मुहब्बत ने डुबाई थी,
सब बातें तो बताती है वो घर में,
पर उस दिन की कहाँ बताई थी,
मेरे नाम की बात बता कर,
किसी और से मिलने आयी थी,
कुछ देर तो बातें हुईं थीं उनसे,
फिर उनको घर को जाना था,
सच में जल्दी घर जाने की,
या फिर कोई वो बहाना था,
उसने बोला वक़्त ही कम है,
वरना थोड़ा और ठहरते,
जब जाते जाते मुड़कर ना देखा,
फिर रुकने कि बातें कैसे कहते,
पता था उनको हम तो दोस्त थे,
पर दोस्ती के भी अहसास थे होते,
कुछ लम्हों की तलब थी दिल को,
जिनमे वो सिर्फ़ मेरे पास में होते,
कुछ बातों का ज़िक्र था बांकी,
तब तक वो आँखों से ओझल थी,
एक पल में ही पलट गई थी,
वहीं कहानी जो कल थी।