ढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें . . .
अमित शर्माढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें
सावन में बरसती
रिम झिम बरखा में
ढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें
बहारों में खिले
फूलों के गुलिस्ताँ में
ढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें
उगते सूरज की लालिमा में
ढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें
चाँद की चाँदनी में
ढूँढ़ता हूँ मैं तुम्हें
मस्जिद से उठती अज़ानों में
और मंदिर से आती आरती में
जैसे ढूँढ़ता कस्तूरी मृग
कस्तूरी को हर जगह
मैं ढूँढ़ता तुम को
हर जगह और जानता नहीं
तुम बसी “मेरे दिल में” . . .