दीवार

05-03-2016

होली हो या दीवाली, ईद कि बक़रीद, 
हम ना खिंचे चाहे, सरकार खिंच गई।
 
बचपन की उम्र थी, छोड़ा न साथ था, 
चाहे हमारी खाल, सौ बार खिंच गई।
 
जबसे पता चला, मज़हब से अलग हम, 
गोया हमारे बीच, तलवार खिंच गई।
 
हम हिन्दु हो गये, वो हो गये मुसलमां, 
आँगन में अंजुम के, दीवार खिंच गई।

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