दर्पण
अजय किशोर
हर क्षेत्र मेंं दिख जाती हैं
लड़कियाँ कुछ महान करते हुए
बस सोच नहीं बदल पाती समाज की
हर काम करते हुए
जो अपने घर में हो तो सोच बहुत ही साफ़ है
रास्ते पर करते हैं कई पाप इंसान बनते हुए
कहने को एक समान होते हैं लड़का-लड़की,
फिर क्यों?
कोख मेंं ही मारी जाती बेटियाँ,
मानवता शर्मसार करते हुए
कभी मौक़ा उन्हें भी दो कुछ करने का
कोई बनेगी प्रतिभा पाटिल सी
कोई बनेगी सावित्री बाई फुले
कोई बनेगी दीपिका पादुकोण
तो कोई गुंजन सक्सेना
हर क्षेत्र मेंं नाम करेगी
नित नए उन्नति के अवसर खोजेगी
वो अपने भारत को सदा जिताएगी
जो बेटी न बचाओगे, स्वर्ण पदक वो कैसे लाएगी
एक बार मीराबाई चानू से पूछो
मणिपुर देख कर उसपर क्या कुछ नहीं बीता है
गर चाहो कुछ करना
विश्व गुरु बनना
तुम ऐसा अब मत होने देना
मेंरी हाथ जोड़ कर बिनती है
अब किसी बेटी को बेअबरू मत होने देना