दहेज़ एक कुप्रथा और सामाजिक नासूर
अपूर्व कुशवाहाचार लोगों के सामने उनके लिये तो दुलहन ही दहेज़ है,
पर अकेले में बिना धन धान्य लिये शादी से परहेज़ है॥
बेटी की शादी हो तो दहेज़ एक कुप्रथा है और नासूर है,
बेटे की शादी में कटोरा हाथ में लेकर दहेज़ लेना ज़रूर है,
इनको अपने हिसाब से सामाजिक परंपराओं को बदलने से नहीं गुरेज़ है॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .
बेटी और बहू में करना भेदभाव इनकी रोज़ की आदत है,
कैसा दोगला चरित्र है दहेज़ लोभियों का उन पर लानत है,
बिन घूँघट बेटी अच्छी पर बहू बिन घूँघट रहे तो तेज़ है॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .
दहेज़ पीढ़ियों से चलती हुई एक मानसिक बीमारी है,
जिसका इलाज करना अब पड़ रहा बहुत ही भारी है,
दहेज़ का लालच बना रहा शादी को बहुओं की मौत की सेज है॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .
माँ बाप के साथ बेटे बेटी भी इस कुप्रथा के ज़िम्मेदार हैं,
क्यूँकि बेटे और बेटी भी दहेज़ लेने देने को तैयार हैं,
माँ बाप की इज़्ज़त से जोड़ ये दहेज़ प्रथा को रखते सहेज हैं॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .
बेटी माँ बाप की जीवन भर की कमाई है जो आपको मिलती है,
फिर भी उन माँ बाप की इज़्ज़त बस दहेज़ के वज़न से तुलती है,
लक्ष्मी रूपी बहू मिलती है फिर भी लोभियों को दहेज़ का ही क्रेज़ है॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .
बातें बना कर दहेज़ को बुरा बता कर कुछ नहीं बदलेगा,
धीरे धीरे सोच बदल कर नए समाज का रास्ता निकलेगा,
दहेज़ की कुप्रथा को हम सब को मिलकर करना निस्तेज है॥
चार लोगों के सामने उनके लिये . . .