चुप हूँ शान्त नहीं
अनिकेत तोमर
एक ख़्याल मैंने भी पाला है
एक बात मुझे भी कहनी है
चुप हूँ शान्त नहीं
ख़ामोशी भी एक उबाल-सी लगती है
पीर इतनी है सीने में कि
अब तो साँस भी भारी लगती है
नींद भी अब आती नहीं मुझे कुछ ख़ास
एक चिंता है जो चिता-सी लगती है
रास्तों पर चल पड़ा हूँ कुछ ऐसे
कि अब कुछ भी लगता नहीं
मगर एक प्रयास-सी लगती है।