चाय

अतुल पाठक (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

चाय की चुस्की में घुला है 
रफ़्ता-रफ़्ता प्यार,
मुस्कुराते लबों पर सदा
बढ़ता रहता ख़ुमार।
 
एक कुल्हड़ चाय से 
उतरे सिरदर्द की मार,
हो चाय सा इश्क़ भी 
हर दिन बन जाए इतवार।
 
रखो अंदाज़ अपना 
जैसा होता है दिलदार,
छूटती नहीं तलब इसकी 
भले ही हो जाए उधार।
 
सुबह-सुबह जो तुम मेरे लिए
गर्मागरम चाय लेकर आती हो,
क़सम से तुम मेरा हर दिन 
ख़ास बनाती हो।

मैं और तुम यानी हम से 
चाय भी तो प्यार करती है,
तभी तो होंठों से आकर 
सीधे गले में उतरती है।

तेरा साथ न छोड़ेंगे तू मीठे बोल सी 
घुलकर मिल जाती है,
कितने रिश्ते-नाते जुड़वाती है 
जब तू टेबल पर नाश्ते में आती है।

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