चाहे तो पीर-पयंबर-कि कलंदर देखो
गंगाधर शर्मा 'हिन्दुस्तान'चाहे तो पीर-पयंबर-कि कलंदर देखो
मौत से छूट सके ना, कि सिकंदर देखो
ये क़ातिल नर्म बाहें हैं हमारे यार की
सिमट के इनमें ख़ुद ही न जाए मर देखो
दीखता है अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ़
ज़ुल्फ़-ए-यार लगता गई बिखर देखो
कोई ताक़त यक़ीन से बढ़कर नहीं होती
है अगर यक़ीं तो तैरा के पत्थर देखो
राम को राह नहीं देकर के क्या मिला
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो
"हिन्दुस्तान" का लिक्खा तारीख़ ही समझो
लिख के नहीं मिटाता कभी अक्षर देखो